Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन प्र. कल्प
॥७६॥
" "" च छ ज झ" दक्षिणभुजे
, त्र" वामभुजे ,, ,, ट ठ ड ढ ण" दक्षिणकुक्षौ ,,, त थ द धन" वामकुक्षौ ", प" दक्षिणोरौ
,, फ" वामोरी ,, ,, ब" गुह्ये ,, ,, भ" नाभिमंडले ,,,, म" स्फिजोः इन्द्रियोभयपार्श्वयोः । ,,,, य" शरीरस्थाने उदरे ,, ,, र" उर्ध्वरोमाञ्चे
ल" पृष्ठे ",,,,, व" ग्रीवाकक्षादिसन्धिषु ,,,,,श" जानुयुग्मयोः
जमणा हाथ पर डाबा हाथ पर जमणी कुख पर डाबी कुख पर जमणा साथळमां डाबा साथळमां गुह्य स्थानमा नाभि पर बे कुला उपर तथा इन्द्रियना बने पडखे. शरीर स्थान ने उदर पर ऊर्ध्वस्थानना रोमांच एटले मस्तकादिनी वालो पर पीठ पर कंठ तथा कक्षा (काख) वगेरे सांधाओमां बंने जानु (घुटण) उपर
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॥७६॥
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