Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
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अञ्जन
प्र. कल्प
119011
पछी केयूर, हार, कड, कुंडळादि सोळ प्रकारना आभूषणौ नीचेना काव्यथी मंत्रित करी परखा:केयूर-हाराऽङ्गद-कुण्डलानि, प्रालम्ब सूत्रं कटिकम्बि-मुद्रिके ।
शस्त्री च पट्टे मुकुटं च मेखला, ग्रैवेयकं नूपुरकर्णपूरे || ५ || (इन्द्रवज्जा)
इन्द्रस्थापना :
त्यार बाद “ ॐ ह्रीँ अर्ह क्षू हुँ इन्द्रं परिकल्पयामीति स्वाहा " ए मंत्री ऋण वार मस्तके वासक्षेप करी इन्द्रनी स्थापना करवी.
'इन्द्राणी स्थापना :
पछी “ ॐ ॐ ह्रीँ को ऐं क्लीं सौं इन्द्राणीं परिकल्पयामीति स्वाहा " ए मंत्री त्रण वार मस्तके वासक्षेप करी इन्द्राणीनी स्थापना करवी.
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( भगवंतना मातपितानी स्थापना :
सौ प्रथम मळादिमंत्रित करी पहेरावा त्यार बाद आचार्य भगवंत सूरिमंत्रथी वासक्षेप करवापूर्वक भगवंतना
१ इन्द्राणीने आभूषण पहेरावता विशिष्टमंत्र बोली शकाय छे ते परिशिष्ट १ -ॠ मां आपेल छे.
२. आ विधान मूळ विधिमां आवतुं नथी. परंतु प्रचलितव्यवहारथी जणावेल छे. ते संबंधी मंत्र पण बोली शकाय ते मंत्र परिशिष्ट नं. १- मां आपेल छे.
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