Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 17
________________ सब प उद्योत का लक्षण विहायोगतिनामकर्म का लक्षण विहायोगति के भेद प्रशस्त विहायोगति का लक्षण अप्रशस्त विहायोगति का लक्षण त्रस का लक्षण स्थावर का लक्षण बादरनामकर्म का लक्षण सूक्ष्मनामकर्म का लक्षण पर्याप्त का लक्षण अपर्याप्त का लक्षण प्रत्येक शरीर का लक्षण साधारणशरीर का लक्षण स्थिर नामकर्म का लक्षण अस्थिर नामकर्म का लक्षण शुभ नामकर्म का लक्षण अशुभ नामकर्म का लक्षण सुभग नामकर्म का लक्षण दुर्भग नामकर्म का लक्षण सुस्वर नामकर्म का लक्षण दुःस्वर नामकर्म का लक्षण आदेय नामकर्म का लक्षण अनादेय नामकर्म का लक्षण यश कीर्ति नामकर्म का लक्षण अयशः कीर्ति नामकर्म का लक्षण निर्माण नामकर्म का लक्षण तीर्थ कर नामकर्म का लक्षण अशुभनामकर्म के बन्ध योग्य परिणाम शुभनामकर्म के बन्ध योग्य परिणाम गोत्रकर्म का लक्षण गोत्रकर्म के भेद 8 8 100 100 101 101 101 102 103 104 104 105 106 106 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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