Book Title: Prakruti Parichaya Author(s): Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Digambar Sahitya PrakashanPage 94
________________ नाराच शरीर सहनन नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएणवज्जविसेसणरहिदणाराएणखीलियाओ हड्डसंधीओ हवंतितंणारायणसरीरसघंडणं नाम। जिस कर्म के उज्य से वज्र विशेषण से रहित नाराच से कीलित हड्डियों की संधियाँ होती हैं, वह नाराच शरीर सहनन नामकर्म हैं। (ध6/74) यतोवज्रवस्थिरास्थिबन्धसामान्यकीलिकावेष्टनमेतद्वयं भवति तन्नाराचसंहननं नाम। जिसके कारण वज्र की तरह स्थिर अस्थिबन्ध तथा सामान्य कीलक और वेष्टन होते हैं, उसे नाराच संहनन कहते हैं। (क.प्र./27) अर्धनाराच शरीर सहनन नामकर्म जस्स कम्मस्सउदएणहड्डसंघीओणाराएण अद्धविद्धाओ हवंतितं अद्धणारायणसरीर सघंडणं णाम। जिस कर्म के उदय से हाड़ों की संधियां नाराच से आधी विधी हुई होती हैं, वह अर्धनाराच शरीर सहनन नामकर्म हैं। (ध-6/74) यतस्सामान्यास्थिबन्धार्धकीलिका भवति तदर्धनाराचसंहननं नाम। जिसके कारण सामान्य अस्थिबन्ध अर्ध कीलित होता है, उसे अर्धनाराच संहनन कहते हैं। (क.प्र./27) कीलक शरीर संहनन नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण अवजहड्डाइं खीलियाई हवंति तं खीलियसरीरसंघडणं णाम। जिस कर्म के उदय से वज्ररहित हड्डियाँ और कीलें होती हैं ; वह कीलक शरीर संहनननामकर्म है। (ध 6/74) यतः कीलित इवसामान्यास्थिबन्धो भवति तत्कीलितसंहननं नाम। जिसके कारण कीलित की तरह सामान्य अस्थिबन्ध होता है, वह कीलित संहनन है। (क.प्र./27) असंप्राप्तासृपाटिका शरीरसहनननामकर्म जस्स कम्मस्स उदएणअण्णोण्णमसंपत्ताईसरिसिवहड्डाईव छिराबद्धाइं हड्डाइं हवंतितं असंपत्तसेवट्टसरीरसंघडणं णाम। जिस कर्म के उदय से सरीसृप अर्थात् सर्प की हड्डियों के समान परस्पर में (73) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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