Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 120
________________ सुभगनामकर्म जस्स कम्मस्सुदएणजीवस्ससोहम्गं होदितं सुहगणाम। जिस कर्म के उदय से जीव के सौभाग्य होता है, वह सुभग नामकर्म है। (ध 13/365) त्थी-पुरिसाणं सोहग्गणिव्वत्तयं सुभगंणाम। स्त्री और पुरुषों के सौभाग्य को उत्पन्न करने वाला सुभग नामकर्म है। (ध 6/65) सुभगनाम परेषां रुचिरत्वं करोति। सुभग नाम कर्म दूसरों की रुचिरता करता है। (क.प्र./37) यदुदयाद्रूपवानरूपोवापरेषां प्रीतिं जनयति तत्सुभगनाम। जिसके उदय से जीव रूपवान होवे चाह कुरूप होवे किन्तु परको प्रीति पैदा कराता है वह सुभग नामकर्म है। (त.वृ.भा.8/11) यदुदयेनजीवः परप्रीतिजनको भवति दृष्टः श्रुतोवा तत्सुभगनाम। जिसके उदय से किसी जीव को देखने या सुनने पर उसके विषय में प्रीति होती है वह सुभगनाम कर्म है। (त.वृ. श्रु. 8/11) दुर्भगनाम कर्म त्थी-पुरिसाणं दुहवभावणिव्वत्तयं दुहवं णाम। स्त्री पुरुषों के ही दुर्भग भाव अर्थात् दौर्भाग्य को उत्पन्न करने वाला दुर्भग नामकर्म है। (ध.6/65) जस्स कम्मस्सुदएणजीवो दूहवो होदितंदूभगंणाम। जिस कर्म के उदय से जीव के दौर्भाग्य होता है वह दुर्भग नामकर्म है। (ध 13/366) दुर्भगनामारुचिरत्वं करोति दुर्भग नाम कर्म दूसरों की अरुचि करता है। (क.प्र./37) यदुदयाद्रूपादिगुणोपेतोऽप्यप्रीतिकरस्तदुर्भगनाम। जिसके उदय से रूपादि गुणों से युक्त होकर भी अप्रीतिकर अवस्था होती है वह दुर्भग नामकर्म है। (स.सि. 8/11) रूपादिगुणोपेतोऽपि सन्थस्योदयादन्येषाम प्रीतिहेतुर्भवति तदुर्भग नाम। (99) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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