Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 128
________________ जिनका दीक्षा योग्य साधु आचार है, साधु आचारवालों के साथ जिन्होंने सम्बन्ध स्थापित किया है तथा जो 'आर्य' इस प्रकार के ज्ञान और वचन व्यवहार के निमित्त हैं , उन पुरुषों की परम्परा को उच्चगोत्र कहा जाता है। तथा उनमें उत्पत्ति का कारण कर्म भी उच्चगोत्र है। (ध 13/389) तत्र महाव्रताचरणयोग्योत्तमकुलकारणमुच्चैर्गोत्रम्। महाव्रतों के आचरण योग्य उत्तम कुलका कारण उच्च गोत्र कर्म कहलाता (क.प्र./38) यस्योदयाल्लोकपूजितेषु कुलेषु जन्म तदुच्चैर्गोत्रम्। जिसके उदय सेलोकपूजित कुलों में जन्म होता है वह उच्चगोत्र है। (स.सि.8/12) लोकपूजितेषु कुलेषु प्रथितमहात्म्येषु इक्ष्वाकूग्रकुरुहरितातिप्रभृतिषु जन्म यस्योदयोद्भवति तदुच्वँर्गोत्रमवसेयम्। जिसके उदय से महत्वशाली अर्थात् इक्ष्वाकु, उग्र, कुरु, हरि और ज्ञाति आदि वंशों में जन्म हो वह उच्चगोत्र है। (रा.वा.8/12) नीच गोत्रकर्म जस्स कम्मस्स उदएणजीवाणं णीचगोदं होदितंणीचगोदं णाम। जिस कर्म के उदय से जीवों के नीच गोत्र होता है, उसे नीच गोत्र कर्म कहते (ध 6/78) यदुदयाद्गर्हितेषु कुलेषु जन्म तन्नीचैर्गोत्रम्। जिसके उदय से गर्हित कुलो में जन्म होता है वह नीचगोत्र है। (स.सि 8/12) गर्हितेषु दरिद्राप्रतिज्ञातदुःखाकुलेषु यत्कृतं प्राणिनां जन्मतन्नीचैर्गोत्रं प्रत्येतव्यम्। जिसके उदय से निन्द्य अर्थात् दरिद्र अप्रसिद्ध और दुःखाकुल कुलों में जन्म हो वह नीचगोत्र है। (रा.वा. 8/12) बहुरि जाके उदयतै निंद्य तथा दरिद्रसहित अप्रसिद्ध दुखः करि आकुलकुलमै जन्म सो नीचगोत्रकर्म है। (अ.प्र.8/9) (107) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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