Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 126
________________ पुण्णस्सासवभूदा अणुकंपा सुद्ध एव उवओगो। विवरीदं पावस्स दु आसवहेउं वियाणादि ॥ शुभसे विपरीत निर्दयपना, मिथ्याज्ञानदर्शनरूप उपयोग पापकर्म के आसव के कारण हैं। (मू./235) मिथ्यादर्शन-पिशुनताऽस्थिरचित्तस्वभावताकूटमानतुलाकरण सुवर्णमणिरत्नाद्यनुकृतिकुटिलसाक्षित्वाऽङ्गोपाङ्गच्यावनवर्णगन्धरसस्पर्शान्यथाभावनयन्त्रपञ्जरक्रियाद्रव्यान्तरविषयसंबन्धनिकृतिभूयिष्ठता-परनिन्दात्मप्रशंसाऽनृतवचन परद्रव्यादानमहारम्भपरिणहउज्जवलवेषरूपमद - परूषासभ्यप्रलाप आक्रोशमौखर्य सौभाग्योपयोगवशीकरणप्रयोग-परकुतूहलोत्पादानाऽलङ्कारादर चैत्यप्रदेशगन्धमाल्यधूपादिमोषण विलम्बनोपहास-इष्टिकापाकदवाग्निप्रयोग प्रतिमायतनप्रतिश्रयारामोद्यानविनाशनतीवक्रोधमानमायालोभपापकर्मोपजीवनादिलक्षणः। स एष सर्वोऽशुभस्य नाम्नआस्त्रवः।। मिथ्यादर्शन, पिशुनता, अस्थिरचित्तस्वभावता, झूठे बाट तराजू आदि रखना, कृत्रिम सुवर्ण मणि रत्न आदि बनाना, झूठी गवाही, अंग उपांगों का छेदन, वर्णगन्ध रस और स्पर्श का विपरीतपना, यन्त्र पिंजरा आदि बनाना, माया बाहुल्य, परनिन्दा, आत्म प्रशंसा, मिथ्याभाषण, पर द्रव्यहरण, महारम्भ, महापरिग्रह, शौकीन वेष, रूपका घमण्ड, कठोर असभ्य भाषण, गाली बकना, व्यर्थ बकवास करना, वशीकरण प्रयोग, सौभाग्योपयोग, दूसरे में कौतूहल उत्पन्न करना अच्छे-अच्छे आभूषणों में रुचि, मंदिर के गन्धमाल्य या धूपादिका चुराना, लम्बी हसी, ईंटों का भट्टा लगाना, वन में दावाग्नि जलवाना, प्रतिमायतन विनाश, आश्रय-विनाश, आराम-उद्यान विनाश, तीव्र क्रोध, मान, माया व लोभ और पापकर्म जीविका आदि भी अशुभ नाम के आस्रव के कारण हैं। (रा.वा. 6/22) पुण्य (शुभ नामकर्म) के बन्ध योग्य परिणाम तद्विपरीतं शुभस्य। (त.सू. 6/23) कायवाङ्मनसामृजुत्वमविसंवादनं च तद्विपरीतम् । 'च' शब्देन समुच्चितस्य च विपरीते ग्राह्मम् । धार्मिकदर्शनसंभ्रमसद्भावोपनयन संसरणभीरुताप्रमादवर्जनादिः। तदेतच्छुभनामकर्मासवकारणं वेदितव्यम्। (105) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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