Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 122
________________ वह दुःस्वरनामकर्म है। (त.वृ. श्रु. 8/11) आदेय नामकर्म आदेयताग्रहणीयताबहुमान्यताइत्यर्थः।जस्सकम्मस्सउदएणजीवस्स आदयेत्तमुप्पज्जदितं कम्ममादेयं णाम। आदेयता, ग्रहणीयता और बहुमान्यता, ये तीनों शब्द एक अर्थवाले हैं। जिस कर्म के उदय से जीव के आदेयता उत्पन्न होती है, वह आदेयनामकर्म कहलाता है। (ध 6/65) आदेयनाम परेर्मान्यतां करोति। आदेय नाम कर्म दूसरों के द्वारा मान्यता करता है। (क.प्र. 38) प्रभोपेतशरीरकारणमादेयनाम। प्रभायुक्त शरीर का कारण आदेय नामकर्म है। (स.सि. 8/11) यदुदयादादेयवाच्यं तदादेयं विपरीतमनादेयमिति। जाके उदयतें आदेय वाच्य (मान्य वचन वाला) होय सो आदेय, अनादेय वाच्य होय सो अनादेय है। (मू. 12/196) अनादेय नामकर्म तविवरीय भावणिवित्तयकम्ममणादेयंणाम। आदेयता से विपरीत भाव (अनादरणीयता) को उत्पन्न करने वाला अनादेय नामकर्म है। (ध 6/65) जस्स कम्मस्सुदएणसोभणाणुट्ठाणो विजीवोणगउरविज्जदि तमणादेनं णाम। जिस कर्म के उदय से अच्छा कार्य करने पर भी जीव गौरव को प्राप्त नहीं होता है, वह अनादेय नामकर्म है। (ध 13/366) अनादेयनामामान्यतां करोति। अनादेय नाम कर्म अमान्यता करता है। (क.प्र.38) निष्प्रभशरीरकारण मनादेयनाम। निष्प्रभ शरीर का कारण अनादेय नामकर्म है। (स.सि. 8/11) यशः कीर्ति नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण संताणमसंताणं वा गुणाणमुब्भावणं लोगेहि (101) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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