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रूपादि गुण युक्त होने पर भी जिसके उदय से दूसरों को अप्रीति स्वरूप लगता है वह दुर्लभ नामकर्म है ।
(त.वृ.भा. 8 / 11 )
यदुदयेन रूपलावण्य गुणसहितोऽपि दृष्टः श्रुतो वा परेषामप्रीतिजनको भवति तदुर्भगनाम ।
जिसके उदय से रूप और लावण्य से सहित होने पर भी जीव दूसरों को अच्छा न लगे वह दुर्भगनाम कर्म है । (त. वृ. श्रु. 8 / 11 )
सुस्वर नामकर्म
जस्स कम्मस्सुदएण कण्णसुहो सरो होदि तं सुस्वरणामं । जिस कर्म के उदय से कानों को प्यारा लगने वाला स्वर होता है, वह सुस्वर
नामकर्म है ।
(ध 13/366)
सुसरो णाम महुरो णाओ ।
सुस्वर नाम मधुर नाद (शब्द) का है ।
सुस्वरनाम श्रवणरमणीयस्वरं करोति । सुस्वर नाम कर्म कर्णप्रिय स्वर करता है ।
(ध 6/65)
यन्निमित्तं मनोज्ञस्वरनिर्वर्तनं तत्सुस्वरनाम। जिसके निमित्त से मनोज स्वर की रचना होती है वह सुस्वर नामकर्म है। ( स. सि. 8 / 11 )
(क. प्र. / 37 )
दुःस्वर नामकर्म
अमहुरो सरो दुस्सरो, जहा गद्दहुट्ट - सियालादीणं । जस्स कम्मस्स उदएण जीवे दुस्सरो होदि तं कम्मं दुस्सरं णाम ।
अमधुर स्वर को दुःस्वर कहते हैं जैसे गधा, ऊंट और सियाल आदि जीवों का स्वर दुःस्वर होता है । जिस कर्म के उदय से जीव के बुरा स्वर उत्पन्न होता है, वह दुःस्वर नामकर्म कहलाता है । (ध 6/65)
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दुस्स्वरं नाम श्रवणदुस्सहं स्वरं करोति ।
(क. प्र. / 37 )
दुःस्वर नामकर्म कानों को दुःसह स्वर करता है । यदुदयेन खरमार्जारकाकादिस्वरवत् कर्णशूलप्रायः स्वर उत्पद्यते तद्दुःस्वरनाम ।
जिसके उदय से गधे, बिल्ली कौआ आदि के स्वर की तरह कर्कश स्वर हो,
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