Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

Previous | Next

Page 119
________________ , शुभ नामकर्म जस्स कम्मस्सुदएण चक्कवट्टि बलदेव वासुदेवत्तादिरिद्धीणं सूचया संखकुसारविंदादओ अंग पच्चंगेसु उप्पज्जति तं सुहणाम।। जिस कर्म के उदय से चक्रवर्तित्व, बलदेवत्व और वासुदेवत्व आदि ऋद्धियों के सूचक शंख, अंकुश और कमल आदि चिन्ह अंग प्रत्यंगों में उत्पन्न होते हैं, वह शुभ नाम कर्म है। (ध 13/365) जस्स कम्मस्सउदएण अंगोवंगणामकम्मोदयजणिद अंगाणमुवंगाणंच सुहत्तं होदितं सुहं णाम। जिस कर्म के उदय से आंगोपांगनाम कर्मोदय जनित अंगों और उपांगों के शुभपना (रमणीयत्व) होता है, वह शुभनाम कर्म है। (ध. 6/64) शुभनाम मस्तकादिप्रशस्तावयवं करोति। शुभ नामकर्म मस्तक आदि प्रशस्त अवयव करता है। (क.प्र./36-37) यदुदयाद्रमणीयत्वं तच्छुभनाम। जिसके उदय से रमणीय होता है वह शुभ नामकर्म है। (स.सि. 8/11) अशुभनामकर्म अंगोवंगाणमसुहत्तणिव्वत्तयमसुहं णाम। अंग और उपांगों के अशुभता का उत्पन्न करने वाला अशुभनामकर्म है। (ध 6/64) जस्स कम्मस्सुदएण असुलक्खणाणि उप्पज्जति तमसुहणामं । जिस कर्म के उदय से अशुभ लक्षण उत्पन्न होते हैं वह अशुभ नामकर्म है। (ध 13/365) अशुभनामापानाद्यप्रशस्तावयवं करोति। अशुभ नामकर्म अपान आदि अप्रशस्त अवयवों को करता है। (क.प्र./37) अतिवैरूप्यहेतुश्च नामाशुभमशोभनम् । जो अत्यन्त विरूपता का कारण है वह दुःखदायी अशुभ नाम कर्म है। (ह.पु. 58/272) (98) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134