Book Title: Prakruti Parichaya Author(s): Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Digambar Sahitya PrakashanPage 96
________________ वर्णनामकर्म के भेद जंतंवण्णणामकम्मंतं पंचविहं, किण्हवण्णणामं,णीलवण्णणामं रुहिरवण्णणाम, हालिद्दवण्णणाम,सुक्किलवण्णणामं चेदि।। जो वर्णनामकर्म है वह पाँच प्रकार का है - कृष्णवर्णनामकर्म, नीलवर्णनामकर्म, रुधिरवर्णनामकर्म, हारिद्रवर्णनामकर्म और शुक्लवर्णनामकर्म । (ध 6 /74) कृष्णवर्णनामकर्म जस्स कम्मस्सउदएणसरीरपोग्गलाणं किण्हवण्णो उपज्जदितं किण्हवण्णं णाम। जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों का कृष्णवर्ण उत्पन्न होता है, वह कृष्ण वर्णनामकर्म है। (ध 6/74) नीलवर्ण नामकर्म जस्स कम्मस्सउदएण सरीरपोग्गलाणंणीलवण्णोउपज्जदितंणीलवणं णाम। जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों का नील वर्ण उत्पन्न होता है, वह नीलवर्ण नामकर्म है। (ध 6/74 आ) रुधिर वर्ण नामकर्म जस्स कम्मस्सउदएण सरीरपोग्गलाणं रुहिरखण्णोउपज्जदितं रुहिरवण्णंणाम। जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों का रुधिर वर्ण उत्पन्न होता है, वह रुधिर वर्ण नामकर्म है। (ध 6/74 आ) हारिद्रवर्णनामकर्म जस्स कम्मस्स उदएणसरीरपोग्गलाणं हालिद्दवण्णो उपज्जदितं हालिदवण्णं णाम। जिस कर्म के उदयसे शरीर संबंधी पुद्गलों का हारिद्र वर्ण उत्पन्न होता है, वह हारिद्र वर्ण नाम कर्म है। (ध 6/74आ) शुक्ल वर्ण नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण सरीर पोग्गलाणं सुक्किलवण्णो उपज्जदि तं सुक्किलवण्णं णाम। (75) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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