Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 109
________________ उद्योत नाम कर्म शीतल प्रभा करता है। वह चन्द्र, तारागण आदि के बिम्ब में तथा तेजकायिकवायुकायिक साधारणकायिकजीवों के सिवायचन्द्रतारक आदि बिम्ब में होने वाले बादरपर्याप्त तिर्यंचजीवों में होता है। (क.प्र./31) उद्योतश्चन्द्रमणिखद्योतादिप्रभवः प्रकाशः।यन्निमित्तमुद्दोतनं तदुद्योतनामा चन्द्रमणि और जुगुनू आदि के निमित्त से जो प्रकाश पैदा होता है उसे उद्योत कहते हैं । जिसके निमित्त से शरीर में उद्योत होता है वह उद्योत नामकर्म है। (स.सि. 5/24, 8/11) विशेष - यदि उद्योत नामकर्म न हो, तो चन्द्र, नक्षत्र तारा और खद्योत (जुगुनू नामक कीड़ा) आदिमें शरीरों के उद्योत (प्रकाश) न होवेगा। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, वैसा पाया नहीं जाता। (ध.6/60) विहायोगतिनामकर्म विहाय आकाशमित्यर्थः । विहायसि गतिः विहायोगति । जेसिं कम्मक्खंधाणमुदएण जीवस्स आगासेगमणं होदितेसिं विहायगदि त्ति सण्णा । विहायस् नाम आकाश का है । आकाश में गमन को विहायोगति कहते हैं। जिन कर्मस्कन्धों के उदय से जीव का आकाश में गमन होता है, उनकी 'विहायोगति' यह संज्ञा है। (ध 6/61) जस्स कम्मस्सुदएण भूमिमोट्ठहिय अणोट्टहियवाजीवाणमागासे गमणं होदितं विहायगदिणाम। जिस कर्म के उदय से भूमि का आश्रय लेकर या बिना उसका आश्रय लिये भी जीवों का आकाश में गमन होता है, वह विहायोगति नामकर्म है। ___ (ध 13/365) विहाय आकाशम् । तत्र गतिनिर्वर्तकं तद्विहायोगतिनाम। विहायस्का अर्थ आकाश है । उसमें गतिका निर्वर्तक कर्म विहायोगति नामकर्म है। (स.सि. 8/11) विशेष - शंका- तिर्यंच और मनुष्यों का भूमिपर गमन किस कर्म के उदय से होता है ? समाधान - विहायोगति नामकर्म के उदय से, क्योंकि, विहस्तिमात्र (बारह अंगुलप्रमाण) पांववाले जीव प्रदेशों के द्वारा भूमिको व्याप्त करके जीवके (88) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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