Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 113
________________ अन्यबाधाकरशरीरकारणं बादरनाम। अन्य बाधाकर शरीर का निर्वर्तक कर्म बादर नामकर्म है। (स.सि. 8/11) घादसरीरं थूलं। जो दूसरों को रोके, तथा दूसरों से स्वयं रुके सो स्थूल कहलाता है। (गो.जी. /183) तद्ग्रहणयोग्यैर्बादरैः। जो इन्द्रियों के ग्रहण के योग्य होते हैं वे बादर हैं। (प्र.सा./230) विशेष - यदि बादरनामकर्म न हो, तो बादर जीवोंका अभाव हो जायगा। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, प्रतिघाती शरीरवाले जीवोंकी भी उपलब्धि होती है। (ध. 6/61) सूक्ष्म जस्स कम्मस्सुदएणजीवा सुहुमेइंदिया होति तं सुहुमणामं । जिस कर्म के उदय से जीव सूक्ष्म एकेन्द्रिय होते हैं वह सूक्ष्म नामकर्म है। (ध 13/365) जस्स कम्मस्स उदएण जीवो सुहुमत्तं पडिवजदि तस्स कम्मस्स सुहुममिदिसण्णा। जिस कर्म के उदय से जीव सूक्ष्मता को प्राप्त होता है, उस कर्म की सूक्ष्म' यह संज्ञा है। ' (ध 6/62) अण्णेहि पोग्गलेहिं अपडिहम्ममाणसरीरोजीवो सुहुमो। जिनका शरीर अन्य पुद्गलों से प्रतिघात रहित है वे सूक्ष्म जीव हैं । (ध. 3/331) सूक्ष्मनाम परैरबाध्यमानं सूक्ष्मशरीरं करोति। सूक्ष्म नामकर्म दूसरों के द्वारा बाधा न दिये जाने योग्य सूक्ष्म शरीर को करता है। (क.प्र./32) सूक्ष्मशरीरनिवर्तकं सूक्ष्मनाम। सूक्ष्म शरीर का निर्वर्तक कर्म सूक्ष्म नामकर्म हैं। (स.सि.8/11) यदुदयादन्यजीवानुपग्रहोपघाताऽयोग्यसूक्ष्मशरीरनिर्वृत्तिर्भवति तत्सूक्ष्मनामा (92) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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