Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 111
________________ होता है । खरोष्ट्रमार्जारकुर्कुरसर्पादिवत् अप्रशस्तविहायोगतिनाम । ऊँट, गधा, बिल्ली, कुत्ता, सर्प आदि के समान कुटिल गति को अप्रशस्त विहायोगति कहते हैं । (त.वृ. श्रु. 8 / 11 ) त्रस नामकर्म जस्स कम्मस्सुदएण जीवाणं संचरणासंचरणभावो होदि तं कम्मं तसणामं । जिस कर्म के उदय से जीवों के गमनागमन भाव होता है वह त्रस नामकर्म है। (ET 13/365) जस्स कम्मस्स उदएण जीवाणं तसत्तं होदि, तस्स कम्मस्स तसेत्ति सण्णा, कारणे कज्जुवयारादो । जिस कर्म के उदय से जीवों के सपना होता है, उस कर्म की 'स' यह संज्ञा कारण में कार्य के उपचार से है । ( ध 6/61) ( रा. वा. 8 / 11 ) त्रसनाम द्वीन्द्रियादीनां चलनोद्वेजादियुक्तं त्रसकायं करोति । त्रस नाम कर्म चलन, उद्वेजन आदि युक्त द्वीन्द्रिय आदि रूप करता है । यदुदयाद् द्वीन्द्रियादिषु जन्म तत्त्रसनाम । जिसके उदय से द्वीन्द्रियादिक में जन्म होता है वह त्रस नामकर्म है । (स. सि. 8 / 11 ) सकाय को (क. प्र. / 32 ) त्रसनामकर्मणो जीवविपाकिन उदयापादित वृत्तिविशेषाः त्रसा इति व्यपदिश्यन्ते । जीव विपाकी स नामकर्म के उदय से उत्पन्न वृत्ति विशेषवाले जीव त्रस कहे जाते हैं । ( रा. वा. 2 / 12 ) विशेष - यदि त्रसनामकर्म न हो, तो द्वीन्द्रिय आदि जीवों का अभाव हो जायेगा । किन्तु ऐसा नहीं है, क्योंकि, द्वीन्द्रिय आदि जीवों का सद्भाव पाया जाता है । (ध. 6/61) Jain Education International स्थावर नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण जीवो थावरत्तं पडिवज्जदि तस्स कम्मस्स थावरसण्णा । (90) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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