Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 107
________________ परघात नाम कर्म दूसरों को बाधा देनेवाले सर्प दाढ़, सींग आदि शरीरावयव करता है । (क. प्र. / 31 ) यन्निमित्तः परशस्त्रादेर्व्याघातस्तत्परघातनाम । जिसके उदय से परशस्त्रादिक का निमित्त पाकर व्याघात होता है वह परघात नामकर्म है । ( स. सि. 8 / 11 ) यस्योदयात्फलकादिसन्निधानेऽपि परप्रयुक्त शस्त्राद्याघातो भवति तत्परघातनाम जिसके उदय से ढाल आदि के रहते हुए भी परके द्वारा किये गये शस्त्रों के आघात हो जाते हैं वह परघात नामकर्म हैं । (त.वृ.भा. 8 /11) यदुदयेन परशस्त्रादिना घातो भवति तत्परघातनाम । जिसके उदय से दूसरों के शस्त्र आदि से जीव का घात होता है वह परघात नामकर्म है । (त. वृ. श्रु. 8 / 11 ) बहुरि जाके उदय तैं औरनि का घात करै ऐसे तीखे आदिक के डाढ़ इत्यादिक अवयव होंहि, सो परघात उच्छवास नामकर्म उच्छ्वसनमुच्छ्वासः । जस्स कम्मस्स उदएण जीवो उस्सासणिस्सासकज्जुप्पायणक्खमो होदि तस्स कम्मस्स उस्सासो त्ति सण्णा, कारणे कज्जुवयारादो । सांस लेने को उच्छ्वास कहते हैं । जिस कर्म के उदय से जीव उच्छ्वास 1 और निःश्वास रूप कार्य के उत्पादन में समर्थ होता है, उस कर्म की 'उच्छ्वास' यह संज्ञा कारण में कार्य के उपचार से है । (ध 6/60) सींग वा नख वा सांप नाम है । ( गो . का . स . च / 33 ) उच्छ्वासनाम उच्छ्वासनिःश्वासं करोति । उच्छ्वास नामकर्म उच्छ्वास और निःश्वासको करता है । (क.प्र./31) यद्धेतुरुच्छ्वासस्तदुच्छ्वासनाम । जिसके निमित्त से उच्छ्वास होता है वह उच्छ्वासनामकर्म है । ( स. सि. 8 / 11 ) विशेष - यदि उच्छ्वास नामकर्म न हो, तो जीव श्वास रहित हो जाय । किन्तु Jain Education International (86) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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