Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 97
________________ जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों का शुक्ल वर्ण उत्पन्न होता है, वह शुक्ल वर्ण नामकर्म है। (ध 6 /74 आ) गंधनामकर्म जस्स कम्मक्खंधस्सउदएणजीवसरीरे जादिपडिणियदोगंधो उप्पज्जदि तस्स कम्मक्खंधस्स गंधसण्णा, कारणे कज्जुवयारादो। जिस कर्म स्कंध के उदय से जीव के शरीर में जाति के प्रतिनियतगंध उत्पन्न होती है। उस कर्म स्कंध की 'गंध' यह संज्ञा कारण में कार्य में उपचार से की गई है। (ध 6/55) जस्स कम्मस्सुदएण दुविहगंध णिप्फत्ती होदि तं गंधणाम। जिस कर्म के उदय से शरीर में दो प्रकार के गन्ध की उत्पत्ति होती है वह गन्ध नामकर्म है। (ध 13/364) स्वस्वशरीराणां स्वस्वगन्धं करोति यत्तद् गन्धनाम। अपने-अपने शरीर की गन्ध जिस कारण होती है, उसे गन्ध नाम कहते हैं। (क.प्र./28) यदुदयप्रभवो गन्धस्तद्गन्धनाम। जिसके उदय से गन्ध की उत्पत्ति होती है वह गन्धनामकर्म है। (स.सि. 8/11) विशेष - यदि गन्धनामकर्म न हो, तो जीवके शरीर की गन्ध-अनियत हो जायेगी। शंका - यदि गंधनामकर्मके अभाव में जीवके शरीरकी गन्ध अनियत होती है, तो होने दो, क्या हानि है ? समाधान - नहीं, क्योकि हाथी और बाघ आदिमें नियत गन्ध पाई जाती है। (ध. 6/55) गंध नामकर्म के भेद जंतं गंधणामकम्मं तं दुविहं, सुरहिगंधं दुरहिगंधचेदि। जो गंधनामकर्म है वह दो प्रकार का है - सुरभिगंध और दुरभिगंध (ध 6/74) सुरभिगंध नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण सरीरपोग्गला सुअंधा होतितं सुरहिगंधणाम। (76) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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