Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 99
________________ कषाय नामकर्म, आम्ल नामकर्म और मधुरनामकर्म । (ध. 6/65) तिक्तनामकर्म जस्सकम्मस्सउदएणसरीरपोग्गलातित्तरसेण परिणमंतितं तित्तंणामा जिस कर्म के उदय से शरीर सम्बन्धी पुद्गल तिक्तरस से परिणत होते हैं वह तिक्तनामकर्म है। (ध 6/75) कटुकनामकर्म जस्स कम्मस्सउदएणसरीरपोग्गला कडुवरसेण परिणमंतितं कडुवं णाम। जिस कर्म के उदय से शरीर सम्बन्धी पुद्गल कटुकरस से परिणत होते हैं वह कटुक नामकर्म है। (ध 6/75 आ) कषायनामकर्म जस्स कम्मस्सउदएण सरीरपोग्गला कषायरसेण परिणमंतितं कषायं णाम। जिस कर्म के उदय से शरीर सम्बन्धी पुद्गल कषायरस से परिणत होते हैं, वह कषाय नामकर्म है। (ध 6/75आ) आम्लनामकर्म जस्स कम्मस्स उदएणसरीरपोग्गलाअंबरसेण परिणमंतितं अंबंणामा जिस कर्म के उदय से शरीर सम्बन्धी पुद्गल आम्लरस से परिणत होते हैं वह आम्ल नामकर्म है। (ध 6/75 आ) मधुर नामकर्म जस्स कम्मस्सउदएणसरीरपोग्गलामहुररसेण परिणमंतितंमहुरंणामा जिस कर्म के उदय से शरीर संबन्धी पुद्गल मधुर रस से परिणत होते हैं वह मधुर नाम कर्म है। (ध 6/75आ) लवणोनाम रसोलौकिकैः षष्ठोऽस्ति। समधुररसभेदएवेति परमागमे पृथक्त्वेन नोक्तः, लवणं बिना। इतररसानांस्वादुत्वाभावात्। लवण नामक छठा रस लोक में माना जाता है। यह मधुर रसका ही भेद है, इसलिए परमागम में अलग से नहीं कहा ; क्योंकि नमक के बिना तो अन्य सभी रस फीके हैं। (क.प्र./29) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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