Book Title: Prakruti Parichaya Author(s): Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Digambar Sahitya PrakashanPage 92
________________ जिस कर्म के उदय से वैक्रियिक शरीर के अंग, उपांग और प्रत्यंग उत्पन्न होते हैं, वह वैक्रियिक शरीर अंगोपांग नामकर्म है। (ध 6/73 आ) आहारक शरीर अंगोपांग नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण आहार सरीरस्स अंगोवंग पच्चंगाणि उप्पज्जति तं आहार सरीरअंगोवंगणाम। जिस कर्म के उदय से आहारक शरीर के अंग, उपांग और प्रत्यंग उत्पन्न होते हैं, वह आहारक शरीर अंगोपांग नामकर्म है। (ध 6/73 आ) शरीर संहनन नाम कर्म जस्स कम्मस्स उदएणसरीरे हड्ड संधीणं णिप्फत्ती होज्ज, तस्स कम्मस्स संघडणमिदिसण्णा। जिस कर्म के उदय से शरीर में हड्डी और उसकी संधियों अर्थात् संयोग स्थानों की निष्पत्ति होती है, उस कर्म की 'संहनन' यह संज्ञा है। (ध 6/54) यस्योदयादस्थिबन्धनविशेषो भवति तत्संहनननाम। जिसके उदय से अस्थियों का बन्धन विशेष होता है वह संहनन नामकर्म है। (स.सि. 8/11) विशेष - इस कर्म के अभाव में शरीर देवों के शरीर के समानसंहनन रहित हो जायेगा। शंका - यदि संहनन कर्म के अभाव में शरीर देव शरीर के समान संहनन होता है तो हो जाने दो क्या हानि है ? समाधान - नहीं, क्योंकि, तिर्यंच और मनुष्य के शरीरों में हाडों का समूह पाया जाता है। (ध 6/54) शरीरसंहनन नामकर्म के भेद जं तं सरीरसंघंडणणामकम्मं तं छव्विहं वज्जरिसहवइरणारायणसरीरसंघडणणामं, वज्जणारायणसरीरसंघडणणाम णारायणसरीरसंघडणणामं अद्धणारायणसरीरसंघडणणामं खीलियसरीर-संघडणणामं असंपत्तसेवट्टसरीरसंघडणणामं चेदि। जो शरीरसंहननामकर्म है वह छह प्रकार का हैं - वज्र ऋषभवज्रनाराच शरीरसंहनननामकर्म, वज्रनाराचशरीर संहनननामकर्म, नाराचशरीर संहनन (71) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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