Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 88
________________ न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान नामकर्म न्यग्रोधो वटवृक्षः समन्तान्मंडलं परिमण्डलं, न्यग्रोधस्य परिमण्डलमिव, परिमण्डलं यस्य सरीरसंस्थानस्य तन्न्यग्रोध परिमण्डल शरीर संस्थानं नाम । अधस्तात् श्लक्ष्णं उपरिविशालं यच्छरीरं तन्न्यग्रोधपरिमण्डलशरीर संस्थानं नाम । न्यग्रोध का अर्थ वट का वृक्ष है और परिमण्डल का अर्थ है सब ओर का मण्डल | न्यग्रोध के परिमण्डल के समान जिस शरीर संस्थान का परिमण्डल होता है वह न्यग्रोधपरिमण्डल शरीर संस्थान है । जो शरीर नीचे सूक्ष्म और ऊपर विशाल होता है वह न्यग्रोधपरिमण्डल शरीर संस्थान कहलाता है । (ध-13 / 368) यत उपरि विस्तीर्णोऽधः संकुचितशरीराकारो भवति तन्न्यग्रोधसंस्थानं नाम । जिसके कारण ऊपर विस्तीर्ण तथा नीचे संकुचित शरीराकार होता है, वह न्यग्रोधसंस्थान है । (क.प्र./24) नाभेरुपरिष्टाद् भूयसो देहसन्निवेशस्याघस्ताच्चाल्पीयसो ननकं न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थाननाम, न्यग्रोधाकारसमताप्रापितान्वर्थम्। न्यग्रोध (बड़) वृक्ष के समान नाभि के ऊपर शरीर में स्थूलत्व और नीचे के भाग में लघु प्रदेशों की रचना होना न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान है । इसमें न्यग्रोध ( वटवृक्ष) के समान देह की रचना होती है, इसलिये इसका सार्थक नाम न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान है । ( रा. वा. 8 / 11 ) स्वातिशरीरसंस्थान स्वातिर्वल्मीकः शाल्मलिर्वा, तस्य संस्थानमिव संस्थानं यस्यशरीरस्य तत् स्वाति शरीर संस्थानम् । अहो विसालं उवरि सण्णमिदि नं उत्तं होदि । स्वाति नाम वल्मीक या शाल्मलीवृक्ष का है । उसके आकार के समान आकार जिस शरीर का है, वह स्वाति शरीर संस्थान है । अर्थात् यह शरीर नाभि से नीचे विशाल और ऊपर सूक्ष्म या हीन होता है । (ध. 6/71) यतोऽधो विस्तीर्ण उपरि संकुचितशरीराकारो भवति तत्स्वाति संस्थानं नाम | स्वातिर्वल्मीकं तत्सादृश्यात् । Jain Education International (67) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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