Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

Previous | Next

Page 86
________________ कार्मणशरीर संघात नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण कम्मइयसरीरक्खंधाणं सरीरभावमुवगयाणं बंधणणाम कम्मोदएण एगबंधणबद्धाण मट्ठत्तं होदि तं कम्मइयसरीरसंघादंणाम शरीर भाव को प्राप्त तथा बंधन नामकर्म के उदय से एक बंधन बद्ध कार्मण शरीर के स्कंधों का जिस कर्म के उदय से छिद्र राहित्यपना होता है, वह कार्मण शरीर संघात नामकर्म है। (ध 6/70आ) शरीरसंस्थाननामकर्म जेसिं कम्मक्खंधाणमुदएण जाइकम्मोदयपरततेण सरीरस्स संठाणं कीरदे तं सरीरसंठाणं णाम। जातिनामकर्म के उदय से परतंत्र जिन कर्म स्कंधों के उदय से शरीर का आकार बनता है, वह शरीर संस्थान नामकर्म है। (ध 6/53) जस्स कम्मस्स उदएण समचउरससादिय-खुज्न वामण-हुंडणग्गोहपरिमंडलसंट्ठाणं सरीरंहोज्ज तं सरीरसंठाणणाम। जिस कर्म के उदयसे समचतुरस, स्वाति, कुब्जक, वामन, हुंड और न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान वाला शरीर होता है। वह शरीर संस्थान नामकर्म है। (ध 13/364) यदुदयादौदारिकादिशरीराकृतिनिर्वृत्तिर्भवति तत्संस्थाननाम। जिसके उदय से औदारिक आदि शरीरों की आकृति बनती है वह संस्थान नामकर्म है। : (स.सि. 8/11) विशेष - (यदि शरीरसंस्थाननामकर्म स्वीकार नहीं किया जाय तो) शरीरसंस्थाननामकर्म के अभाव में जीव का शरीर आकृति-रहित हो जायेगा। (ध. 6/53) शरीरसंस्थाननामकर्म के भेद जं तं सरीरसंठाणणामकर्म तं छव्विहं समचउरसरीरसंठाणणाम, णग्गोहपरिमंडलसरीरसंठाणणाम,सादियसरीरसंठाणणाम,खुजसरीरसंठाणणामं वामणसरीरसंठाणणामं हुंडसरीरसंठाणणामं चेदि। जो शरीर संस्थान नामकर्म हैं वह छह प्रकार हैं - समचतुरस्रशरीरसंस्थान नामकर्म,न्यग्रोधपरिमंडल शरीरसंस्थान नामकर्म, स्वातिशरीर (65) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134