Book Title: Prakruti Parichaya Author(s): Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Digambar Sahitya PrakashanPage 84
________________ लिये आये हुए शरीर संबंधी पुद्गल स्कंधों का मृष्टत्व, अर्थात् छिद्र रहित संश्लेष किया जाता है, उन पुद्गल स्कंधों की 'शरीर संघात' यह संज्ञा है। (ध. 6/53) जस्स कम्मस्स उदएण अण्णोण्ण सबंद्धाणं वग्गणाणं/मट्ठत्तं होदि तं सरीरसंघादणामं, अण्णहा तिलमोअओव्व विसंतुल सरीरहोज्ज. जिस कर्म के उदय से परस्पर संबंध को प्राप्त हुई वर्गणाओं में मसृणता आती है वह शरीर संघात नामकर्म है, इसके बिना शरीर तिल के मोदक के सपान विसस्थुल (अव्यवस्थित) हो जायेगा। (ध. 13/364) यदुदयादौदारिकादिशरीराणां विवरविरहितान्योऽन्यप्रदेशानुप्रवेशेन एकत्वापादनं भवति तत्संघातनाम। जिसके उदय से औदारिक आदि शरीरों की छिद्र रहित होकर परस्पर प्रदेशों के अनुप्रवेश द्वारा एकरूपता आती है वह संघात नामकर्म है। (स.सि. 8/11) विशेष - यदि शरीरसंघातनामकर्म जीवके न हो, तो तिलके मोदकके समान अपुष्ट शरीरवाला जीव हो जावे । किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, तिलके मोदकके समान संश्लेष-रहित परमाणुओंवाला शरीर पाया नहीं जाता। (ध. 6/53) शरीर संघातनामकर्म के भेद जं तं सरीरसंघादणामकम्मं तं पंचविहं ओरालियसरीरसंघादणामं वेउब्वियसरीरसंघादणामं आहारसरीरसंघादणामं तेयासरीरसंघादणामं कम्मइयसरीरसंघादणामं चेदि। जो शरीर संघात नामकर्म है वह पांच प्रकार का है - औदारिक शरीर संघात नामकर्म, वैक्रियिकशरीरसंघातनामकर्म, आहारक-शरीरसंघातनामकर्म, तैजसशरीरसंघातनामकर्म और कार्मणशरीर-संघातनामकर्म । (ध 6/70) औदारिक शरीर संघात नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण ओरालियसरीरक्खंधाणं सरीरभावमुवगयाणं बंधणणाम कम्मोदएण एगबंधणबद्धाण मट्ठत्तं होदि तमोरालियसरीरसंघादंणाम। शरीर भाव को प्राप्त तथा बंधननामकर्म के उदय से एक बंधनबद्ध औदारिक (63) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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