Book Title: Prakruti Parichaya Author(s): Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Digambar Sahitya PrakashanPage 83
________________ तत्रौदारिकशरीराकारेण परिणतपुद्गलानां परस्परसंश्लेषरूपो बन्धो यतो भवति तदौदारिकशरीरबन्धननाम। जिसके कारण औदारिक शरीर के आकार रूप से परिणत पुद्गलों का परस्पर संश्लेष रूप बन्ध होता है, वह औदारिक शरीर बन्धन नाम कर्म है। (क.प्र./22) वैक्रियिक शरीर बंधन नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण वेउब्वियसरीर परमाणू अण्णोण्णेण बंधमागच्छंतितं वेउब्वियसरीरबंधणंणाम। जिस कर्म के उदय से वैक्रियिक शरीर के परमाणु परस्पर बंध को प्राप्त होते हैं, उसे वैक्रियिक शरीर बंधन नामकर्म कहते हैं। (ध. 6/70 आ) आहारक शरीरबंधन नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण आहारसरीर परमाणू अण्णोण्णेण बंधमागच्छंति तं आहारसरीरबंधणं णाम। जिस कर्म के उदय से आहार शरीर के परमाणु परस्पर बंध को प्राप्त होते हैं, उसे आहारशरीरबंधननामकर्म कहते हैं। (ध. 6/70 आ) तैजस शरीर बंधन नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएणतेजासरीर परमाणू अण्णोण्णेण बंधमागच्छंति तं तेजासरीर बंधणं णाम। जिस कर्म के उदय से तैजस शरीर के परमाणु परस्पर बंध को प्राप्त होते हैं, उसे तैजसशरीरबंधननामकर्म कहते हैं। (ध. 6/70 आ) कार्मण शरीर बंधन नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण कम्मइय सरीर परमाणु अण्णोण्णेण बंधमागच्छंति तं कम्मइय सरीरबंधणं णाम। . जिस कर्म के उदय से कार्मण शरीर के परमाणु परस्पर बंध को प्राप्त होते हैं, उसे कार्मण शरीर बंधन नामकर्म कहते हैं। (ध. 6/70 आ) शरीरसंघात नामकर्म जेहिं कम्मक्खंधेहि उदय पत्तेहि बंधणणाम कम्मोदएण बंधमागयाणं सरीर पोग्गलक्खंधाणं मठ्ठत्तं कीरदे तेसिं सरीरसंघादसण्णा। उदय को प्राप्त जिन कर्म स्कंधों के द्वारा बंधननामकर्म के उदय से बंध के (62) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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