Book Title: Prakruti Parichaya Author(s): Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Digambar Sahitya PrakashanPage 46
________________ योनि, कोमलता, भयशील होना, मुग्धपना, पुरुषार्थशून्यता, स्तन और पुरुषभोग की इच्छा ये सात भाव स्त्रीवेद के सूचक हैं। (त.वृ. श्रु. 8/9) पुरुषवेद जस्स कम्मस्स उदएण मणुस्सस्स इत्थीसु अहिलासो उप्पज्जदि तं, कम्मं पुरिसवेदोणाम। जिस कर्म के उदय से मनुष्य की स्त्रियों में अभिलाषा उत्पन्न होती है वह पुरुष वेद है। (ध. 13/361) यतः पुमांसमात्मानं मन्यमानःस्त्रियां वेदयतिरन्तुमिच्छतिसः पुंवेदः। जिसके कारण अपने को पुरुष मानता हुआ स्त्री में रमण करने की इच्छा करता है, वह पुंवेद है। __ (क.प्र./15) यस्योदयात्पौंस्नान्भावानास्कन्दति स पुंवेदः। जिसके उदय से पुरुष सम्बन्धी भावों को प्राप्त होता है वह पुंवेद (पुरुषवेद) है। (स.सि. 8/9) खरत्वं मोहनं स्तान्ध्यं शौंडीयं श्मश्रुघृष्टता। स्त्री कामेन समं सप्त लिङ्गानि नरवेदने ॥ लिंग, कठोरता, स्तब्धता, शौण्डीरता, दाड़ी-मूंछ, जबर्दस्तपना और स्त्री -भोगेच्छा, ये सात पुंवेद के सूचक हैं। (त.वृ. श्रु. 8/9) नपुंसकवेद जेसिं कम्मक्खंधाणमुदएण इट्टावागणिसरिच्छेण दोसु वि आकंखाउप्पज्जइतेसिंणउंसगवेदो त्ति सण्णा। जिन कर्म स्कंधों के उदय से ईटों के अवा की अग्नि के समान स्त्री और पुरुष इन दोनों पर भी आकांक्षा उत्पन्न होती है उनकी 'नपुंसकवेद' यह संज्ञा है। __ (ध. 6/47) यतो नपुंसकमात्मानं मन्यमानःस्त्रीपुंसोर्वेदयतिरन्तुमिच्छतिस नपुंसकवेदः। जिसके कारण अपने को नपुंसक मानता हुआ स्त्री और पुरुष दोनों में रमण करने की इच्छा करता है, वह नपुंसकवेद है। (क.प्र./15) यदुदयान्नापुंसकान्भावानुपव्रजति सनपुंसकवेदः। Jain Education International (25) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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