Book Title: Prakruti Parichaya Author(s): Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Digambar Sahitya PrakashanPage 77
________________ द्वीन्द्रियजाति नामकर्म कहलाता है। (ध. 6/68) यतःस्पर्शनरसनेन्द्रियवन्तो जीवाभवन्तिसाद्वीन्द्रियजातिः। जिसके कारण जीव केवल स्पर्शन और रसना इन्द्रिय युक्त होता है, वह द्वीन्द्रिय जाति नाम कर्म है। (क.प्र./19) विशेष - द्वीन्द्रियजातिनामकर्म अनेक प्रकारका है, अन्यथाशंख, मातृवाह, क्षुल्लक, वराटक (कौंडी), अरिष्ठ, शुक्ति (सीप), गंडोला और कुक्षिकृमि (पेटमें उत्पन्न होनेवाला कीड़ा) आदि जातियों का भेद नहीं बन सकता (ध. 6/68) त्रीन्द्रिय जातिनामकर्म जस्स कम्मस्स उदएणजीवाणं तीइंदियभावेण समाणत्तं होदितं तीइंदिय जादिणामकम्म। जिस कर्म के उदय से जीवों की त्रीन्द्रिय भाव की अपेक्षा समानता होती है, वह त्रीन्द्रिय जातिनाम कर्म है। ___ (ध. 6/68) यतः स्पर्शनरसनघ्राणेन्द्रियवन्तोजीवा भवन्ति सात्रीन्द्रियजातिः। जिसके कारण जीव स्पर्शन, रसना तथा घ्राण इन्द्रिय युक्त होता है, वह त्रीन्द्रिय जाति नाम कर्म है। (क.प्र./19) विशेष - त्रीन्द्रियजातिनामकर्म अनेक प्रकार का है, अन्यथा, कुंथु, मत्कुण (खटमल) जूं, विच्छू, गोम्ही, इन्द्रगोप और पिपीलिका (चींटी) आदि जातियों का भेद हो नहीं सकता है। (ध. 6/68) चतुरिन्द्रियजातिनामकर्म जस्स कम्मस्सउदएणजीवाणंचउरिदिय मावेणसमाणत्तं होदितं कम्म चउरिंदियजादिणाम। जिस कर्म के उदय से जीवों की चतुरिन्द्रिय भाव की अपेक्षा समानता होती है वह चतुरिन्द्रिय जातिनामकर्म है। (ध. 6/68) यतः स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुष्मन्तो जीवा भवन्तिसाचतुरिन्द्रियजातिः। जिसके कारण जीव स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु युक्त होता है, वह चतुरिन्द्रिय जाति नाम कर्म है। (क.प्र./19) विशेष - चतुरिन्द्रियजातिनामकर्म अनेक प्रकारका है, अन्यथा भ्रमर, (56) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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