Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

Previous | Next

Page 48
________________ रमता है उसे रति कहते हैं । जिन कर्म स्कन्धों के उदय से द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावों में राग उत्पन्न होता है, उनकी 'रति' यह संज्ञा है । (ध. 6/47 ) नप्तृ - पुत्र- कलत्रादिषु रमणं रतिः । नाती, पुत्र एवं स्त्री आदिको में रमण करने का नाम रति है । यतो रमयति सा रतिः । जिसके कारण रमे (प्रसन्न हो), वह रति है । यदुदयाद्देशादिष्वौत्सुक्यं सा रतिः । जिसके उदय से देशादि में उत्सुकता होती है वह रति है । (स.सि. /8/9) ( ध 12 /285) मनोज्ञेषु वस्तुषु परमा प्रीतिरेव रतिः । मनोहर वस्तुओं में परम प्रीति सो रति है । (नि.सा./ता.वृ/ 6) यदुदयाद्देशपुरग्राममन्दिरादिषु तिष्ठन् जीवः परदेशादिगमने च औत्सुक्यं न करोति सा रतिरुच्यते । जिसके उदय से देश, पुर, ग्राम, मन्दिर आदि में रहता हुआ जीव दूसरे शादि में जाने के लिये उत्सुक नहीं होता है वह रति कहलाती है । (त. वृ. श्रु. 8 / 9 ) रमयतेऽनयेति रमणं वा रति ; कुत्सिते रमते येषां कर्मस्कन्धानामुदयेन द्रव्यक्षेत्रकालभावेषु रतिरुत्पद्यते तेषां रतिरिति संज्ञा । तैं रमणा सो रति रमिये जाकरि वा कुत्सित अर्थ विषै रमे जाकरि रति । जिन कर्म्म स्कंधनि के उदय करि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव विषै रति उपजै तिनकी रति ऐसी संज्ञा है । (मू. 12/192) यतो विषण्णो भवति सारतिः । जिसके कारण विषण्ण (खिन्न) हो, वह अरति है । (क. प्र. / 14 ) अरति दव्व खेत्त काल भावेसु जेसिमुदएण जीवस्य अरई समुप्पज्जइ तेसिमरदि त्ति सण्णा । जिन कर्म स्कंधों के उदय से द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावों में जीव के अरुचि उत्पन्न होती है, उनकी 'अरति' यह संज्ञा है । (ध. 6/47 ) Jain Education International (27) For Private Personal Use Only (क. प्र. / 14 ) www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134