Book Title: Prakruti Parichaya Author(s): Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Digambar Sahitya PrakashanPage 71
________________ हैं वे लौकांतिक होते हैं । संयम, समिति, ध्यान एवं समाधि के विषय में जो निरन्तर श्रमको प्राप्त हैं अर्थात् सावधान हैं, तथा तीव्र तपश्चरण से संयुक्त हैं वे श्रमण लौकान्तिक होते हैं । पाँच महाव्रतों से सहित, पाँच समितियों का चिरकाल तक आचरण करने वाले, और पाँचों इन्द्रिय विषयों से विरक्त ऋषि लौकान्तिक होते हैं । (ति.प. 8 / 669-74) नामकर्म नाना मिणोति निर्वर्त्तयतीति नाम । नाना प्रकार की रचना निष्पन्न करता है, वह नामकर्म है । (ध. 6 / 13 ) योनिषु नरकादिपर्यायैरात्मानं नमयति-शब्दयतीति नाम चित्रकाखत् । चित्रकार की तरह जो आत्मा को नाना योनियों में नरकादि पर्यायों द्वारा माता है अर्थात् ले जाता है, वह नामकर्म है । (क.प्र./3) नमयत्यात्मानं नम्यतेऽनेनेति वा नाम । TataHा है या जिसके द्वारा आत्मा नमता है वह नामकर्म है । ( स. सि. 8 / 4 ) विशेष - शंका उस नामकर्मका अस्तित्व कैसे जाना जाता है ? समाधान - शरीर, संस्थान, वर्ण आदि कार्योंके भेद अन्यथा नहीं हो सकते हैं, इस अन्यथानुपपत्तिसे नामकर्मका अस्तित्व जाना जाता है । (ध. 6/13) नामकर्म के भेद णामस्स कम्मस्स वादालीसं पिंडपयडीणामाईं गदिणामं जादिणामं सरीरणामं सरीरबंधणणामं सरीरसंघादणामं सरीरसंट्ठाणणामं सरीरअंगोवंगणामं सरीरसंघडणणामं वण्णणामं गंधणामं रसणामं फासणामं आणुपुव्वीणामं अगुरुअलहुवणामं उवघादणामं परघादणामं उस्सासणामं आदावणामं उज्नोवणामं विहायगदिणामं तसणामं थावरणामं बादरणामं सुहुमणामं पज्नत्तणामं अपज्जत्तणामं पत्तेयसरीरणामं साधारणसरीरणामं थिरणामं अथिरणामं सुहणामं असुहणामं सुभगणामं दूभगणामं सुस्सरणामं दुस्सरणामं आदेज्जणामं अणादेज्जणामं जसकित्तिणामं अजसकित्तिणामं णिमिणणामं तित्थयरणामं चेदि । नामकर्म की ब्यालीस पिंड प्रकृतियाँ हैं -गतिनाम, जातिनाम, शरीरनाम, Jain Education International (50) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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