Book Title: Prakruti Parichaya
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Digambar Sahitya Prakashan

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Page 47
________________ जिसके उदय से नपुंसक सम्बन्धी भावों को प्राप्त होता है वह नपुंसकवेद है। (स.सि. 8/9) यानि स्त्रीपुंसलिङ्गानि पूर्वाणीति चतुर्दश। शक्तानि तानि मिश्राणि षण्ढभावनिवेदने। स्त्रीवेद और पुरुषवेद के सूचक चौदह चिह्न मिश्रित रूप में नपुंसकवेद के सूचक हैं। (त.वृ. श्रु. 8/9) हास्य हसनं हासः। जस्स कम्मक्खंधस्स उदएणहस्सणिमित्तो जीवस्स रागो उप्पज्जइ, तस्स कम्मक्खंधस्स हस्सो त्ति सण्णा, कारणे कज्जुवयारादो। हंसने को हास्य कहते हैं । जिस कर्म स्कंध के उदय से जीव के हास्य निमित्तक राग उत्पन्न होता है, उस कर्मस्कंध की कारण में कार्य के उपचार से 'हास्य' यह संज्ञा है। (ध. 6/47) जस्स कम्मस्स उदएण अणेयविहो हासो सपुप्पज्जदि तं कम्मं हस्सं णाम। जिस कर्म के उदय से अनेक प्रकार का परिहास उत्पन्न होता है, वह हास्य कर्म है। (ध. 13/361) यतो हासो भवति तद्धास्यम्। जिससे हँसी आये, वह हास्य प्रकृति है। (क.प्र./13) यस्योदयाद्धास्याविर्भावस्तद्धास्यम्। जिसके उदय से हँसी आती है वह हास्य है। (स.सि. 8/9) हास्यं वर्करादिस्वरूपं यदुदयादाविर्भवति तद्धास्यम्। जिसके उदय से वर्करादि (आमोद, मनोरंजन) स्वरूप हँसी आती है, वह हास्य है। (त.व. श्रु. 8/9) रति रमणं रतिः, रम्यते अनया इति वा रतिः । जेसिं कम्मक्खंधाणमुदएण दव्व-खेत्त-काल-भावेसुरदीसमुप्पज्जइ, तेसिं रदित्ति सण्णा। रमने को रति कहते हैं अथवा जिसके द्वारा जीव विषयों में आसक्त होकर (26) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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