Book Title: Prakruti Parichaya Author(s): Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Digambar Sahitya PrakashanPage 25
________________ मतिज्ञान द्वारा ग्रहण किये गये अर्थ से भिन्न अर्थ का ज्ञान श्रुतज्ञान है, उसे जो आवृत करता है वह श्रुतज्ञानावरणीय है। (क.प्र./5) अवधिज्ञानावरणीय अवाग्धानादवधि ; अवधिश्च स ज्ञानं च तत् अवधिज्ञानम् । अथवा अवधिर्मर्यादा, अवधेर्मानमवधि ज्ञानम् । एवंविहस्स ओहिणाणस्स जमावारयं तमोहिणाणावरणीयं। जो नीचे की ओर प्रवृत्त हो, उसे अवधि कहते हैं । अवधिरूप जो ज्ञान होता है, वह अवधिज्ञान कहलाता है । अथवा अवधि नाम मर्यादा का है, इसलिये द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा विषय संबंधी मर्यादा के ज्ञान को अवधिज्ञान कहते हैं। इस प्रकार के अवधिज्ञान का आवरण करने वाला जो कर्म है, उसे अवधिज्ञानावरणीय कहते हैं। (ध. 6/25-28) परमाणुआदि महक्खंधं तं पोग्गलदव्वविसयओहिणाणकारणसगसंवेयणं ओहिदंसणं। तस्य आवारयं ओहिदसणावरणीयं। परमाणु से लेकर महास्कन्ध पर्यंत पुद्गल द्रव्य को विषय करने वाले अवधिज्ञान के कारणभूत स्वसंवेदन का नाम अवधिदर्शन है और इसके आवारक कर्म का नाम अवधि दर्शनावरणीय है। ध. 13/355) वर्णगन्धरसस्पर्शयुक्तसामान्यपुद्गलद्रव्यं तत्संबन्धिसंसारीजीवद्रव्याणि च देशान्तरस्थानि कालान्तरस्थानि च द्रव्यक्षेत्रकालभवभावानवधीकृत्य यत्प्रत्यक्षं जानातीत्यवधिज्ञानं तदावृणोतीत्यवधिज्ञानावरणीयम्। भिन्न देश तथा भिन्न काल में स्थित वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श युक्त सामान्य पुद्गल द्रव्य तथा पुद्गल द्रव्य के सम्बन्ध से युक्त संसारी जीव द्रव्यों को जो द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव की मर्यादा लेकर प्रत्यक्ष जानता है, वह अवधिज्ञान कहलाता है, उसका आवरण करने वाला अवधिज्ञानावरणीय (क.प्र./5) मनः पर्यय ज्ञानावरणीय परकीय मनोगतोऽर्थो मनः, तस्य पर्यायाः विशेषाः मनः पर्ययाः, तान् जानातीति मनः पर्ययज्ञानं मणपज्जवणाणस्स आवरणं मणपज्जवणाणावरणीयं। दूसरे व्यक्ति के मन में स्थित पदार्थ मन कहलाता है। उसकी पर्यायों अर्थात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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