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पाठ
६५
संज्ञार्थक क्रियाएँ :
(स्त्रीलिंग संज्ञा)
(क)
अर्थ
उवलद्धि
EE
उपलब्धि
मुक्ति
MP
गति
संति
दिट्ठि दृष्टि
शान्ति बुद्धि बुद्धि . सिद्धि सिद्धि
- भक्ति कित्ति कीर्ति नि. ६१ : इन शब्दों के रूप इकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों की तरह सभी विभक्तियों में
चलते हैं। . उदाहरण वाक्य :
मज्झ कज्जस्स इमा उवलद्धि अस्थि = मेरे कार्य की यह उपलब्धि है। जणा तस्स भर्ति पासन्ति
= लोग उसकी भक्ति को देखते हैं। बुद्धीए कज्जाणि सिज्झन्ति = बुद्धि से कार्य सिद्ध होते हैं। मुत्तीआ सों तवं कुणइ . = मुक्ति के लिए वह तप करता है। सो कित्तित्तो बीहइ
= वह कीर्ति से डरता है। इदं खंतीए दारं अस्थि
= यह शान्ति का द्वार है। सो थुईसु लीणो अस्थि = वह स्तुतियों में लीन है। "शब्दकोश (स्त्री.) : सति = स्मृति कंति =
कान्ति . पंति = पंक्ति सिद्धि = सिद्धि मइ. = . मति
दित्ति = • रइ = रति
धिइ = धैर्य प्राकृत में अनुवाद करो :
___ उस तरुणी की गति धीमी है। उनकी दृष्टि तेज है। इस कार्य की सिद्धि कब होगी? तुम सब ईश्वर की भक्ति करो। स्तुति से देवता प्रसन्न नहीं होते हैं। शान्ति से जीवन में सुख होता है। कवि काव्य लिख कर कीर्ति प्राप्त करता है। निर्देश : इन संज्ञार्थक क्रियाओं (स्त्रीलिंग) के सभी विभक्तियों में रूप लिख कर
अभ्यास कीजिए।
दीप्ति
खण्ड १