Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy
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सुरसुंदरी अ सिक्खइ, लिहियं गणियं च लक्खणं छंदं । कव्वमलैंकारजुयं, तक्कं च पुराणसमिईओ॥५५ ।। सिक्खेइ भरहसत्थं, गीयं नट्टं च जोइसतिगिच्छं। विज्जं मंतं तंतं, हरमेहलचित्तकम्माइं॥५६ ।। अन्नाइंपि कुंडलविटलाइंकरलाघवाइकम्माइं। सत्थाई सिक्खियाई, तीइ चमुक्कारजणयाई॥५७ ॥ सा कावि कला तं किंपि, कोसलं तं च नत्थि विन्नाणं । जं सिक्खियं न तीए, पन्नाअभिओगजोगेणं ॥५८ ॥ सविसेसं गीयाइस, निउणा वीणाविणीयलीणा सा। सुरसुन्दरी वियड्डा,—जाया . पत्ता य तारुण्णं ॥५९ ।। जारिसओ होइ गुरूं, तारिसओ होइ सीसगुणजोगो। इत्तुच्चिय सा मिच्छ—दिट्ठि उक्किट्ठदप्पा अ॥६० ॥ तह मयणसुंदरीवि हु, एया उ कलाओ लीलमित्तेण । सिक्खेइ विमलपन्ना, धन्ना विणएण संपन्ना॥६१ ॥ जिणमयनिउणेणज्झावएण. मयणसुंदरीबाला। तह सिक्खविया जह जिणमयंमि कुसलत्तणं पत्ता॥६२ ॥ एगा सत्ता दुविहो नओ. य कालत्तयं गइचउक्कं । पंचेव अस्थिकाया, 'दव्वछक्कं च सत्त नया॥६३ ॥
अट्ठेव य कम्माइं नवतत्ताइं च दसविहो धम्मो। • एगास्स पडिमाओ बारस वयाइं निहीणं . च॥६४ ॥ इच्चाइ वियाराचारसारकुसलत्तणं च संपत्ता। अन्ने सुहुमवियारेवि मुणइ सा निययनामं वि॥६५॥ कम्माणं । मूलुत्तरपयडीओ गणइ मुणइ कम्मठिई। णाणइ . कम्मविवागं, बंधोदयदीणं रसंतं॥६६॥ जीसे सो उज्झाओ, संतो दंतो जिइंदिओ धीरो। जिणमयाओ सुबुद्धि, सा किं नह होइ तस्सीला? ॥६७ ॥ सयलकलागमकुसला, निम्मलसम्मत्तसीलगुणकलिया। लज्जासज्जा सा मयणसुंदरी जुव्वणं पत्ता॥६८ ॥ अन्नदिणे अभितरसहानिविद्वेण नरवरिंदेण। अज्झावयसहियाओ, अणविवाओ कुमारीओ॥६९ ॥
खण्ड १
१५७
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