Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 246
________________ उवस्सए विउसीए नज्जइ थीणं निब्भग्गा सारुत्ति उद्दिस्स वुड थूलो 'आणा' सेयं. अणु सीयाले जागरिस् पिहिअ रविति मोणेण = तुरंगमपिट्ठ सावमाणं मारइस्सं = = = = = = = बुढ़ापे में = = = वार्ता द्वारा सद्गति को पाठ ६ : चार दामादों की कथा प्रारम्भ हुआ जामाउणो पारद्धो खज्जरसलुद्धा भोजन रस के लोभी बोहियव्वा नीचे पायतिगं हिट्ठमि नीसारियव्वा निकालना चाहिए भज्ज भार्या मिसिअमन्न मिश्रित अन्न मोटी आज्ञा अच्छा अनुमति 'शीतकाल में जागूँगा = = |||||| = = = उपासरे में पुव्ववयंमि सच्चत्थनाणे विदुषी के जाना जा सकता है सच्चत्थनाणे = बन्द = स्त्रियों की अभागिन = सार है उद्देश्य करके = . चिल्लाते हैं मौन रूप से घोड़े की पीठ अपमानपूर्वक मारूंगा नन्ना वासानईपूरतुल्ल = . धक्कामुक्केण = धक्का-मुक्के से चएज्जा. त्यागते पडिबुद्धो वट्टाए सई साऊ • अइप्पिय पक्कन्नं रोगो अओ सिक्खं अम्ह लद्धवाओ विलसिउ उच्चसरेण थिआ अत्थरणाभावे छाइअवत्थं उइअं मा जुज्झह ताडिज्जमाणो हुति = = = = = = = = दामाद = समझाना चाहिए तीन पाद स्वाद युक्त अत्यन्त प्रिय पकवान रोटी यहाँ से सीख (आशीष ) हमारी = = = = = = = = = = = = = = = = यौवन में सच्चे अर्थ को जानकर सच्चे अर्थ को = जानकर ऐसी दूसरी नहीं है पीव की नदी से भरे हुए के समान प्रतिबोधित हुआ = उपाय प्राप्त कर मनोरंजन के लिए उंचे स्वर में ठहरे बिस्तर के अभाव में बिछाने वाला वस्त्र उचित मत लड़ो पीटा जाने पर होते हैं २०५

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