Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

Previous | Next

Page 223
________________ नडपुत्तो रोहो उज्जेणि नामेणं वित्थिण्णसुरभवणा समुद्धरधणोहा मालवमंडलमंडणभूआ नयरी समत्थि। तत्थ जियसत्तूनामा रिउपक्खविक्खोहकारओ नयगुणसणाहो सइ-गुणी सुदढपणओ नरनाहो आसी। अह उज्जेणिसमीवे सिलागामो गामो। तत्थ य भरहो नडो। सो य तग्गामे पहू, नाडयविज्जाए लद्धपसंसो य। तस्स णामेण रोहओ, मामस्स य सोहओ सुओ। ___ अन्नया कयाइ वि मया रोहयमाया। तओ भरहो घरकज्जकरणकए अण्णं तज्जणणिं संठवेइ। रोहओ य बालो। सा य तस्स हीलापरायणा हवइ। तो तेण सा भणिया—“अम्मो जं ममं सम्मं न वट्टसि, न वं सुंदरं होही। एत्तो अहं तह काहं जह तं मे पाएस पडसि।" ___ एवं कालो वच्चइ। अह अण्णया कयाइ वि ससिंपयासधवलाए रयणीइ सो एगसज्जाए जणगसहिओ पासुत्तो। तो रयणिमज्झभागे उट्ठित्ता उब्भएण होऊणं उच्चसरेणं जणओ उट्ठाविय भासिओ जहा—“ताय ! पेक्खसु एस कोइ परपुरिसो जाइ !" स सहमुट्ठिओ जाव निद्दामोक्खं. काऊणं लोयणेहि जाएइ ताव तेण न दिट्ठो कोइ पुरिसो। ___ ततो रोहओ पुट्ठो–“वच्छा ! सो कत्थ परपुरिसो!" तेण जणओ भणिओ—“इमेणं दिसाविभागेणं सो तुरियतुरियं गच्छंतो मे । दिट्ठो।" तओ सो महिलं नट्ठसीलं परिकलिय तीए सिढिलायरो जाओ। सा पच्छायावपरिगया भासइ "वच्छ ! मा एवं कुणसु।” रोहओ भणइ-“कहं मम लटुं न वट्टामि?" सा बेइ–“अह लट्ठ वट्टिस्सं। तओ तुमं तहा कुणसु जहा एसो तुह प्राकृत स्वयं-शिक्षक

Loading...

Page Navigation
1 ... 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250