Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 239
________________ थोवंतरंमि = थोड़े समय में विऊणं = विद्वानों को समिईओ = स्मृति शास्त्र हर-मेहल = चित्रकला के भेद करलाघवाइ = हस्तकला आदि पन्नाअभिओग = प्रज्ञा के संयोग से अक्किट्ठदप्पा = अधिक घमंडी (५१-६१) सगब्भाउ = गर्भयुक्त अज्झावयाण = अध्यापकों को . तिगिच्छं = चिकित्साशास्त्र. कुंडलविटलाई = जादू, इन्द्रजाल चमुक्कार = चमत्कार वियड्डा = चतुर लीलमित्तेण = सरलता से (६२-१०४) तस्सीला = वैसे आचरण वाली विणओणयाउ = विनम्र से नम्र... मेलावडउ . = मिलाप.. आइट्ठा = आदेश प्राप्त . दमिआरी = शत्रु को दमन जीसे = जैसा अणाविआओ = बुलवाया गव्वगहिलाए = घमंड से पूर्ण परिसा = परिषद् परमप्पह = परम-पथ (मोक्ष) करने वाला ... पूरणपवणो = पूर्ण करने में तत्पर नाय . = जानकर अहिवल्ली = पान की बेल पूगतरुणं , सुपारी के वृक्ष ईसि = थोडा उवज्जियं = उपार्जित जुज्जए ___= उचित है . पुन्नबलिओ = पुण्यशाली दम्मिओ = नाराज इंतो . = आये हुए खलिज्जइ = हटाया जा सकता है . मुहप्पियं · ,= मुख पर प्रिय बोलना (१०५-१२५) रइवाडिया = क्रीड़ा उद्यान धमधमन्तो = जलते हुए पिच्छइ = देखता है . साडंबरमियंत = आडंबरपूर्वक आते हुए ससोंडीरा = पराक्रमपूर्ण तयदोसी = दूषित चमड़ी वाला मंडलवइ = मंडल कोढ़ से पीड़ित दडुल = दर्दुर कोढ़ी थइआइत्तो = पानदान धारण करने वाले पसूइयवाया = वातरोग से पीड़ित कच्छादब्बेहिं = खुजली रोग से पीड़ित विउंचिअपामा = पामा खुजली से समन्निया = समन्वित पेडएण = समूह से महीवीढे = पृथ्वी के छोर में पंजिअदाणं = भेंटदान . .. वलिओ = घूमा विअप्पुत्ति - विकल्प (इच्छा) १९८ प्राकृत स्वयं-शिक्षक

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