Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 242
________________ (४१-५०) उब्बिबं : डरे हुए पविरल = श्रेष्ठ सुव्वळ = सुनो। वियडोवरोह = विस्तृत नितम्ब पामरजणोहो = किसान-समूह सुव्वसिय = बसे हुए अविउत्तो = सहित सइ = सदा वरवल्लई = श्रेष्ठ वीणादुरुण्णय = ऊँचे उठे हुए (दूर तक फैले हुए पओहराओ = स्तन (पानी से भरी हुइ) वाहीओ = बाँहवाली (बहाने वाली) वाणियाओ = वाणी वाली (पानी वाली) णिण्णाउव्व = नदियों की तरह . (५१-६०) अच्छउ = हैं सेसाइ = शेष लोगों के (खेत) ___= बीत जाती है वोच्छामि = कहता हूँ पडिराविज्जइ = प्रतिध्वनि की जाती है. जण्णग्गि = यज्ञ की अग्नि साणूर = देवघर थूहिया = स्तूप तरणि . = सूर्य णिरंतरतरिय = हमेशा छाये हुए परिसेसिय = छोड़कर आयवत्तं = छाते को विलयाहिं = वनिताओ द्वारा . कलयंठि-उल = कोकिल-समूह दोच्चं = दूत-कर्म . सरसावराह = ताजे अपराध लंपिक्कं = दूर करने वाला लवुप्फुसणा = बूंदों को सोखने विहाइ वाला ॥ ॥ ॥ णासंजलीहि = नथुनों के द्वारा सद्धालुएहि = रसिकों के द्वारा (६१-७०) धुव्वन्ति = धुल जाते हैं तद्दियसियं = उस दिन के भोत्तुं.. . = अनुभव करने हेतु मइलिजंति = मैले हो जाते हैं अविग्गहो = शरीर रहित सव्वंग = समस्त अंग (युद्ध-रहित) (राज्य के सात विष्णु की तरह अंगों से युक्त) शरीर वाला दद्दसणो = दुष्ट दर्शनवाला कुवई = कुपति (पृथ्वीपति) (दुर्लभ दर्शन वाला) ___= नम्र, शत्रुओं को साहसिओ = साहसी झुकाने वाला, दान, धर्म करने वाला परायेपन से रहित णयवरो खण्ड १ २०१

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