Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 241
________________ सवइ आकाश गब्भिय = सज्जित मसिणिय = घिसे गये सीसट्ठि = सिर पर स्थित कुसुंभुप्पीलो = केशर का रस सलिलुल्लो = जल से गीला = आपकी . (११-२०) जलुप्पीला = जल से भरी हुई फुरंत . = चमकीले वियारणो... = विचारक (आकाशगामी) सुवण्ण = 'अच्छे अक्षर (पत्ते) अइट्ठ = रहित (रात्रि) परिहावं = गुणोत्कर्ष ... भसण-सहावा = प्रलाप करने वाले परम्मुहा = न देखने वाले . .. = झरता है = मख यज्ञ की अग्नि (२१-३०) असार-मइणा = तुच्छ बुद्धि वाले रिक्ख = चंदुज्जए = कुमुद में वेवंतओ = झूमता हुआ: : छप्पओं = भ्रमर तिगिच्छि = मकरन्द पाणासवं = पीने की मद्य सहइ = शोभित होता है .. णिव्वविओ = शीतल दरं-दलिय. = थोड़ी खिली हुई । मालई =, चमेली उद्धरो में उत्कृष्ट विसेसावलि = तिलक-पंक्ति विम्वल = निर्मल घडंति = मिलते हैं · उय = देखो विलोहविज्जंत = आकर्षित अविहाविय = अज्ञात (३१-४०) पवियंभिय = उल्लसित तारालोयं = तारों से भरा आकाश . (स्नेहं से भरी आँखें) __= स्वाधीन (प्राप्य) साहेह = कहो = उसके द्वारा एत्थं = यहाँ सव्वंति = सुनी जाती हैं विनिहाउ = विविध जाउ = जो ताउ = वे मयच्छि = मृगाक्षि असुएण = बिना पढ़े हुए अल्लविङ = कहने के लिए तीरइ ___= संभव है वियडो = विस्तृत, श्रेष्ठ भग्गो = प्रारम्भ हो अकयत्थिएण = सरलता से | = श्रेष्ठ सहीणो २०० प्राकृत स्वयं-शिक्षक

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