Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 243
________________ धूमिय सत्तासो = सात अश्व वाला सोमो = चन्द्रमा, सौम्य (निर्भय) भोई = सर्प, भोग करने वाला दोजीहो = दो जीभवाला (दुर्जन) तुंगो = उंचा, स्वाभिमानी समीव = पास से (सेवकों को) बहुलंतदिणेसु = अमावस्या के दिनों में वोच्छिण्ण = रहित मंडल = राज्य (घेरा) तणुयत्तण = दुर्बल (क्षीण) । पट्टी = पीठ (पीछे का भाग) जए = जग में परेहि = दूसरों (शत्रुओं) के द्वारा सच्चविया = देखी गयी है। पिसंगाण = पीले रंग वाले बोलिया = . व्यतीत होती है (भय से पीले) (७१-८०) वम्मह-णिभेण = कामदेव के बहाने लडह-विलयाहि = प्रधान नायिकाओं द्वारा . विरांयति = विलीन हो जाते हैं पहुत्त = प्राप्त । मल्लियामोओ = चमेली का खिलना विसंति . = प्रवेश करते हैं .. गुंदि = मंजरी _ = झुकी हुई मायंद गहणाई = आम्र-कन · पहियाण = पथिकों के लिए (८१-९०) फलुप्पंक = फल-समूह थोऊससंत = थोड़ा साँस लेती हुई पणच्चिराहि = नृत्य करती हुई वाहिप्पइ = बुला रही है णेवच्छो = नैपथ्य —णववरइत्तोव्व' = नये वर की तरह कंकेली = अशोक वृक्ष लुलइ = लोटता है छिप्पंती = छुये जाने पर विवसिज्जइ = वश में किया जाता है विच्छुरिए = प्रकाशमान समं = साथ (९१-१००) कणयायलो = सुमेरु पर्वत णियसि = देखती हो पडिहत्थं = परिपूर्ण चिंचल्लिया = रचना विशेष (सुशोभित) णिडाल __= ललाट वत्तणीओ = मार्ग पत्तत्तं पात्रता = पत्रलेखा (प्राप्त) अविहाविय = अज्ञात ___ पाइया . = पिला दिया है = पान २०२ प्राकृत स्वयं-शिक्षक

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