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शब्दार्थ
पद्य-संकलन
पाठ १ : अंजना-पवनंजय कथा
(गाथा १-३०) प्राकृत शब्द अर्थ प्राकृत शब्द
प्राकृत शब्द अर्थ विद्दाणलोयणा = निस्तेज नेत्रवाली पलवइ . = प्रलाप करती थी .. नवरं = बाद में आसासिजइ = सान्त्वना प्राप्त करती थी। वायाए .= वाणी में अइतणुओ = अतिसूक्ष्म .... सवडहुत्तो = सामने अभिट्टा . = भिड़ गये , जोहं = योद्धा ओसरिय = भागती हुई। समय साथ
सिग्घं = शीघ्र पडियागओ = वापिस आया हुआ वीसज्जिओ = भेजा गया हूँ वीसत्थो = विश्वस्त . साहीणं = समर्थ
(३१-६०) उल्लोल्लो = शोर थम्भल्लीणा = खंभे से टिकी हुई तिप्पइ = तृप्त होती है उब्वियणिज्जा = उद्वेगयुक्त उवट्ठिया = उपस्थित हुई है चलणपणाम = चरण-प्रमाण आयत्तं = अधीन सरेज्जासु = याद किये जाओगे वियम्भन्ती = जंभाई लेती हुई उद्धाई = उंचे जाती है उप्पयइ = उड़ जाती है सरिया = याद की गयी । अकण्णसुहं = सुनने में अप्रिय पसयच्छी ___ = विशाल नेत्रवाली
(६१-९०) अग्गीवए = बरामदे में ओणमिय = प्रणाम कर . उब्भिन्नंगो = रोमांचित अंगवाली सासिया = दंडित की गयी वहेज्जासु = प्रदान करें पम्हुससु = भूल जाओ आवडियं = सम्बद्ध हुए निव्वविय = व्यतीत किया
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प्राकृत स्वयं-शिक्षक