Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy
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सज्जन - दुज्जण :.
जयंति ते सज्जणभाणुणो सया, वियारिणोजाण सुवण्णसंचया । अइट्ठदोसा वियसंति संगमे, कहाणुबंधा कमलायरा इव ॥ १२ ॥ सो जयउ सुयणा वि दुज्जणा इह विणिम्मिया भुयणे । ण तमेण विणा पावंति चंद-किरणा वि परिहावं ॥ १३ ॥ दुज्जण- सुयणाण णमो णिच्वं पर कज्ज- वावड-मणाणं । एक्के भसण-सहावा पर-दोस-परम्मुहा अणे ॥ १४ ॥ अहवा ण को वि दोसो दीसइ सयलम्मि जीयलोयम्मि । सव्वो च्चिय सुयण- यणो जं भणिमो तं णिसाह ॥ १५ ॥ सज्जप्प-संगेण वि दुज्जणस्स णं हु कलुसिमा समोसरइ । ससि-मंडल-मज्झ-परिट्ठियो वि कसणो च्चिय कुरंगो ॥ १६ ॥ [दुज्जण - संगेण वि सज्जणस्स णासं ण होइ सीलस्स । ती सलोणे वि मुहे वि हु अहरो महुँ सवइ ॥१६/ १ ॥] अलमवरेणासंबंधालाव-परिग्गहाणुबंधेण बाल- जण-विलसिएण
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व णिरत्थ- वाया-पसंगेण ॥१७॥
कविउलवण्णणं : आसि
तिवेय-तिहोमग्गि-संग-संजणिय-तियस-परिओसो ।
संपत-तिवग्ग-फलो बहुलाइच्चो त्ति णामेण ॥ १८ ॥
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वेएहि ।
अज्ज. वि महग्गि- पसरिय- धूम - सिहा- कलुसियं व वच्छयलं । उव्वहइ मय-कलंकच्छण मयलंछणो जस्स ॥१९॥ तस्स य गुण-रयण-महोवहीए एक्को सुओ समुप्पण्णो । भूसणभट्टो णामेण णियय-कुल-णहयल-मयंको ॥२०॥ जस्स पिय-बंधवेहि व चउवयण - विणिग्गएहि एक्क-वयणारविंद-ट्ठिएहिं बहु-मणिओ तस्स तणएण एयं असार- मइणा वि विरइयं कोऊहण लीलावइ त्ति मं तं जह मियंक केसरि-कर -पहरण - दलिय - तिमिर -करि-कुंभे । विक्खित्त-रिक्ख-मुत्ताहलुज्जले
कहा-रयणं ॥२२॥
सरय- रयणी ॥ २३ ॥
खण्ड १
अप्पा ॥ २१ ॥
सुणह ।
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