Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 215
________________ [गहिऊण . चूय-मंजरि कीरो परिभमइ पत्तला-हत्थो । ओसरस सिसिर-णरवइ पुहई लद्धा वसंतेण ॥७४/१ ॥] मउलंत-मउसिएसुं वियसिय-वियसंत-कुसुम-णिवहेसु । .. सरिसं चिय ठवइ पयं वणेसु लच्छी वसंतस्स ॥७५ ॥ बहुएहि वि किं परिवड्ढिएहि बाणेहि कुसुम-चावस्स । एक्केणं चिय चूयंकुरेण कज्जं ण पज्जतं ॥७६ ॥ घिप्पइ कणयमयं पिव पसाहणं जणिय-तिलय-सोहेण ।... अब्भहिय-जणिय-सोहं . कणियार-वणं वसंतेण ॥७७ ॥ वियसंत विविह वराइ कुसुमसिरिपरिमया महा-तरुणो। ... किं पुण वियंभमाणो जं ण कुणइ मल्लियामोओ ॥७८ ॥ पढम चिय कामियणस्स कुणइ मउयाइं पाडलामोओ। . हिययाइं सुहं वच्छा विसंति सेसा वि कुसुम-सरा ॥७९॥ . पज्जत्त-वियासुव्वेल्ल-गुंदि पब्भर-णूमिय दलाई। पहियाण दुरालोयाइं होति मायंगहणाई ॥८० ॥.. अपहुत्त-वियासुड्डीण भमर-विच्छाय-दल - उडुब्भेयं । . . कुंद लइयाए वियलइ हिम-विरहायासियं । कुसुमं ॥८१॥ आबझंत-फलुप्पंक-थोय विहडंत संधि-बंधेहिं । मंद पवणाहएहिं वि परिगलियं सिंदुवारेहिं ॥८२ ॥ थोऊससंत-पंकय-मुहीए णिव्वण्णिए . वसंतम्मि । वोलीण-तुहिणभरसुत्थियाए हसियं व . णलिणीए ॥८३ ॥ मलय-समीर-समागम-संतोष-पणच्चिराहिं सव्वत्तो। वाहिप्पइ णव-किसलय-कराहिं साहाहिं महु-लच्छी ॥८४ ।। दीसइ पलास-वण-वीहियासु पप्फुल्ल-कुसुमणिवहेण । रत्तंबर-णेवच्छो णव-वरइत्तो ब्व . महुमासो ॥८५ ॥ परिवड्डइ चूय-वणेसु विसइ णव-माहवी-वियाणेसु । . लुलइ व कंकेलि दलावलीसु मुइउ व्व महुमासो १८६ ।। अण्णण्ण-वणलया-गहिय-परिमलेणाणिलेण छिप्पंती। . कुसुमंसुएहिं रुयइ व परम्मुही तरुण चूय-लया ॥८७ ।। वियसिय णीसेस वणंतराल परिसंठिएण कामेण । विवसिज्जइ कुसुम सरेहिं लद्ध पसरेहिं कामियणो ॥८८ ॥ .. १७४ प्राकृत स्वयं-शिक्षक

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