Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy
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विणओणयाउ ताओ, सरूवलावन्नखोहिअसहाओ। विणिवेसिआउ रन्ना, नेहेणं उभयपासेसु ॥७० ॥
बुद्धिपरिक्खणं ___ हरिसवसेणं राया, तासिं बुद्धिपरिक्खणनिमित्तं ।।
एगं देइ समस्सा- पयं दुविहंपि समकालं ॥७१ ॥ जहा- “पुन्निहिं लब्भइ एह,... । तो तक्कालं अइचंचलाइ अच्चंतगव्वगहिलाए . सुरसुन्दरीइ भणियं, हुँ हुँ पूरेमि निसुहेण ॥७२॥ ... जहा- धणजुव्वण सुवियड्डपण, रोगरहिअ निअ देहु। .. मणवल्लह मेलावडउ, पुन्निहिं लब्भइ एहु॥७३ ।। तं सुणिय निवो तुट्ठो, पसंसए साहु साहु उज्झाओ। .... जेणेसा सिक्खविआ, परिसावि भणेइ सच्चमिणं ॥७४ ॥ .. तो रन्ना आइट्ठा, मयणा वि हु पूरए समस्सं तं। .. जिणवयणरया संता दंता ससहावसारिच्छं ॥७५ ॥ जहा- विणयविवेयपसण्णमणु · सीलसुनिम्मलदेहु। परमप्पहमेलावडउ, पुण्णेहिं लब्भइ , एहु॥७६ ।।
तो तीए उवझाओ, मायावि अ हरिसिया न उण सेसा। . जेण तत्तोवएसो न कुणइ हरिसं कुदिट्ठीणं॥७७ ॥ केरिसो वरो
कुरुजंगलंमि देसे, संखपुरीनामपुरवरी ' अस्थि । जा पच्छा विक्खाया, जाया अहिछत्तकामेणं ॥७८ ।। तत्थत्थि महीपाले कालो . इव वेरिआण दमिआरी। पइवरिसं सो गच्छइ, उज्जेणिनिवस्स सेवाए॥७९ ॥ अन्नदिणे तप्पुत्तो, अरिदमनो नाम तारतारुन्नो। सम्पत्तो पिअठाणे, उज्जेणिं रायसेवाए॥८० ॥ तं च निवपणमणत्थं समागयं तत्थ दिव्वरूवधरं । सुरसुन्दरी निरिक्खइ, तिक्खकडक्खेहिं ताडंति ॥८१ ॥ तत्थेव थिरनिवेसिअदिट्ठि, दिट्ठा निवेण सा बाला। भणिया य कहसु वच्छे ! तुज्झ वरो केरिसो होउ ? ॥८२ ।।
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प्राकृत स्वयं-शिक्षक
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