Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy
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सीलमहिमा
सा
रन्ना ॥१६३ ॥
वयणं ।
निअपेंडयस्स मज्झे, रयणीए ऊंबरेण भणिआ भद्दे ! निसुणसु, इमं अजुत्तं कयं तहवि न किंपि विणट्ठे, अज्जवि तं गच्छ कमवि नररयणं । जेण होइ न विहलं, एयं तुह रूवनिम्माणं ॥१६४॥ इअ पेडयस्स मज्झे, तुज्झवि चिट्ठतिआइ नो कुसलं । पायं कुसंगजणिअं, मज्झवि जायं इमं कुटुं ॥१६५॥ तो त मयणाए, नयणंसुयनीरकलुसवयणाए । पइपाएस निवेसि असिराइ भणिअं इमं वयणं ॥ १६६ ॥ सामिअ! सव्वं मह आइसेसुं किंचेरिसं पुणो नो भणियव्वं जं दूहवेइ अन्नं च—पढमं महिलाजम्मं, केरिसयं तंपि होइ जइ लोए । सीलविहूणं नूणं, ता जाणह सीलं चिअ महिलाणं, विभूषणं सीलमेव सीलं जीवियसरिसं, सीलाउ न सुन्दरं ता सामिअ! आमरणं, मह सरणं तंसि चेव नो इअ निच्छियं वियाणहू, अवरं जं होइ तं एवं ती : अइनिच्चलाइ दढसत्तपिक्खणनिमित्तं । सहसा सहस्सकिरणो,
मह माणसं एयं । १६७ ॥
कंजिअ
होउ ॥ १७० ॥
पत्तो ॥ १७१ ॥ पामि ।
मयणाए वयणेणं, सो त समं तुरंतो,
सिरिरिसहभवणंमि ॥१७२ ॥
जिणवरपूआ
सूरुव्व
हरि अतमतिमिरदेव, सेवागयगयमय–रायपाय,
उदयाचलचूलिअं
ओ
आणंदपुंलइ अंगेहि, तेहि दोहिवि मयणा जिणमयनिउणा, एवं भत्तिब्भरनमिरसुरिंदवंद — वंदिअपयपढमजिणंदचंद
-
चंदूज्जलकेवलकित्तिपूर,
खण्ड १
पत्तो
मयणा ।
कुहिअं ॥ १६८ ॥
सव्वस्सं ।
किंपि ॥ १६९ ॥
अन्नो ।
नमंसिओ सामी । थोडं समादत्ता ॥ १७३ ॥
1
पूरियभुवणंतरवेरिसूर ॥१७४ ॥ देवासुरखेयरविहिअसेव ।
पायडियपणामह कयपसाय ॥ १७५ ॥
१६५
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