Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy
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सायरसमसमयामयनिवास, वासवगुरुगोयरगुणविकास । कासुज्जलसंजमसीललील, लीलाइविहिअमोहावहील ॥१७६ ॥ हीलापरजंतुसु अकयसाव, सावयजणजणिअआणंदभाव। भावलयअलंकिअ रिसहनाह, नाहत्तणु करिहरिदुक्खदाह ॥१७७ ॥ इअ रिसहजिणेसर भुवणदिसेसर, तिजयविजयसिरिपालपहो ! मयणाहिअ सामिअ सिवगइगामिअ, मणह मणोरह पूरिमहो ॥१७८ ॥ एवं समाहिलीणा, मयणा जा थुणइ ताव जिणकंठा । करठिअफलेण सहिआ, उच्छलिया . कुसुमवरमाला ॥१७९ ॥ मयणावयणाओ उंबरेण सहसत्ति तं फलं गहि। मयणाइ सयं माला-गहिया आणंदिअमणाए ॥१८० ॥ . भणिअं च तीइ सामिअ, फिट्टिस्सइ एस तुम्हं तणुरोगो। जेणेसो संजोगो, जाओ जिणवरकयपसाओं ॥१८१ ॥ तत्तो मयणा • पइणा, सहिआ मुनिचंदगुरुसमीवंमि । .. पत्ता पमुइअचित्ता, भत्तीए नमइ तस्स पए ॥१८२ ॥ गुरुणो य तया करुणापरित्तचित्ता कहंति · भवियाणं । गंभीरसजलजलहरसरेण धम्मस्स 'फलमेव ॥१८३ ॥ सुमाणुसत्तं सकुलं सुरूवं, साहग्मारुग्गमतुच्छमाउ । · रिद्धिं च विद्धिं च पहुत्त-कित्तिं, पुन्नप्पसाएण लहन्ति सत्ता ॥१८४ ।।
णवपयाण-आराहणं
इच्चाइ देसणंते, गुरुणो पुच्छंति परिचियं मयणं । वच्छे कोऽयं धन्नो, वरलक्खणलक्खिअसुपुन्नो ! ॥१८५ ॥ मयणाइ रुअंतीए, कहिओ सव्वोवि निअयवुत्तंतो । विनतं च न अन्नं, भयवं! मह किंपि अस्थि दुहं ॥१८६ ॥ एयं चिअ मह दक्खं, जं मिच्छादिविणो इमे लोआ । निंदति जिणहधम्मं, सिवधम्मं चेव पसंसंति ॥१८७ ॥ सा पहु कुणह पसायं, किंपि उवायं कहेह मह पइणो । जेणेस दुट्ठवाही, जाइ खयं लोअवायं च ।१८८ ॥
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प्राकृत स्वयं-शिक्षक
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