Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy
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सामिअ! अम्हाण पहू, ऊंबरनामेण राणओ एसो । सव्वत्थ वि मन्निज्जइ, गरुएहिं दाणमाणेहिं ॥१२३ ॥ तेणऽम्हाणं धणकणयचीरपमुहेहिं कीरइ न किंपि । एतस्स पसायेणं, अम्हे सव्वेवि अइसुहिणो ॥१२४ ।। एगो नाह ! समत्थि, अम्ह मणचिंतिओ विअप्पुत्ति ।। जइ लहइ राणओ राणियंति ता सुन्दरं होइ ॥१२५ ॥ ता नरनाह ! पसायं, काऊणं देहि कन्नगं एगं। अवरेण कणगकप्पणदाणेणं तुम्ह पज्जतं ॥१२६ ॥ तो भणइ रायमंती, अहो अजुत्तं विमग्गिअं तुमए । को देइ नियं धूयं, कुट्ठकिलिट्ठस्स जाणंतो ॥१२७ ॥ गलिअंगुलिणा भणियं, अम्हेहिं सुया निवस्सिमा कित्ती । . . . जं किल मालवराया, करेइ नो पत्थणाभंग ॥१२८ ॥ तो सा निम्मलकित्ती, हारिज्जउ अज्ज नरवरिंदस्स । । अहवा दजउ कावि हु, धूया कुकुलेवि संभूया ॥१२९ ॥
मयणसुंदरीविवाहो
पभणेइ नरवरिंदो, दाहिस्सइ तुम्ह कन्नगा एगा। को फिर हारइ कित्ती, इत्तियमित्तेण कज्जेण? ॥१३० ॥ चिंतेइ मणे राया, कोवानलजलियनिम्मलविवेगो । नियध्यं अरिभयं, तं . दाहिस्सामि एसस्स ॥१३१ ॥ सहसा वलिऊण तओ, नियआवासंमि आगओ राया। बुल्लावइ तं मयणासुन्दरिनामं नियं धूयं ॥१३२ ॥ हुँ अज्जवि जइ मन्नसि, मज्झ पसायस्स संभवं सुक्खं ।। ता उत्तमं वरं ते, परिणाविय देमि भूरि धणं ।१३३ ॥ जइ पुण नियकम्म चिय, मन्नसि ता तुज्झ कम्मणाणीओ। एसो कुट्ठिअराणो, होउ वरो किं वियप्पेण? ॥१३४ ॥ हसिऊण भणइ बाला, आणीओ मज्झ कम्मणा जो उ। सो चेव मह पमाणं, राओ वा रंकजाओ वा ॥१३५ ।। कोवंधेणं रन्ना, सो ऊंबरराणओ समाहूओ भणिओ य तुममिमीए, कम्माणीओसि होसु वरो ॥१३६ ।।
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प्राकृत स्वयं-शिक्षक
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