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पाठ.
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नियम : कर्मवाच्य-भाववाच्य नि. ८१ : प्राकृत में कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य एवं भाववाच्य के प्रयोग होते हैं। कर्तृवाच्य
में कर्ता को प्रथमा विभक्ति और कर्म को द्वितीया विभक्ति होती है। क्रिया कर्ता के अनुसार होती है। इसके नियम आप पाठ २० में सीख चुके हैं।
कर्मवाच्य : नि. ८२ : कर्मवाच्य के कर्ता में तृतीया विभक्ति और कर्म में प्रथमा विभक्ति होती
है। क्रिया का लिंग, वचन और पुरुष कर्म के अनुसार रहता है। नि. ८३ : मूल क्रिया को कर्मवाच्य या भाववाच्य बनाने के लिए उसमें ईअ अथवा
इज्ज प्रत्यय लगाया जाता है। उसके बाद वर्तमान, भूतकाल, विधि आज्ञा के प्रत्यय लगाकर क्रिया का प्रयोग किया जाता है। जैसेमूलक्रिया - वाच्य-प्रत्यय वर्तमान भू. का. विधि आज्ञा पास + ईअ = 'पासीअ- पासीअमि पासीअईअ पासीअमु
पास + इज्ज = पासिज्ज- पासिज्जमि पासिज्जीअ पासिज्जमु नि. ८४ : कर्मवाच्य या भाववाच्य में भविष्यकाल के प्रयोगों में ईअ या इज्ज प्रत्यय
मूल क्रिया में नहीं लगते हैं। अत: सामान्य भविष्यकाल के प्रत्यय लगाकर
ही क्रियाएँ प्रयुक्त होती हैं। यथा-पासिहिमि, पासिहामो इत्यादि । नि. ८५ : भूतकाल के कर्मवाच्य या भाववाच्य में भूतकाल के कृदन्तों का भी प्रयोग .. होता है। इनमें ईअ या इज्ज प्रत्यय नहीं लगते। कृदन्तों के प्रयोग
कर्मवाच्य में कर्म के अनुसार होते हैं। यथा.: तेण छत्तो दिवो = उसके द्वारा छात्र को देखा गया।
तेण बाला दिट्ठो = उसके द्वारा बालिका को देखा गया। . . . . . तेण मित्तं दिलु = उसके द्वारा मित्र को देखा गया। नि. ८६. : भाववाच्य के कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है। कर्म नहीं रहता और
. क्रिया सभी कालों में अन्य पुरुष एकवचन में होती है। जैसे.. तृतीया. वि. व. का. भू. का भ. का. विधि-आज्ञा
अम्हेहि हसिज्जइ हसिज्जीअ हसिहिइ हसिज्जउ सीसेहि भणीअइ भणीअईअ भणिहिइ भणीअउ
आणिज्जइ जाणिज्जीअ जाणिहिइ जाणीअउ पासीअइ पासीअईअ पासिहिइ पासीअउ
तेण
खण्ड १