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पाठ
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सन्धि प्रयोग निर्देश : प्राकृत में सन्धि का प्रयोग प्रायः वैकल्पिक है, अनिवार्य नहीं। प्राकृत
साहित्य में सन्धि के कई प्रयोग देखने को मिलते हैं। प्राकृत-वैयाकरणों ने सन्धि के कुछ नियम भी बतलाये हैं। प्रारम्भिक जानकारी के लिए
कुछ प्रमुख नियम एवं उनके उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं। . 1. स्वर-सन्धि
प्रथम शब्द के अन्तिम स्वर एवं द्वितीय शब्द के पहले स्वर मिल जाने पर शब्द में जो परिवर्तन होता है उसे स्वर-सन्धि कहते हैं।
प्राकृत में स्वर-सन्धि के प्रायः निम्न प्रयोग देखे जाते हैंसमान स्वर (१) अ + अ = आ यथा- जीव + अजीव = जीवाजीव
णर + अहिव = णराहिव
धम्म + अधम्म = धम्माधम्म . (२) इ+इ, ई + इ=ई यथा- मुणि + ईसर = मुणीसर
मुणि + इंद. = मुणीद
रयणी + ईस = रयणीस (३) उ+ उ, ऊ + उ =ऊ यथा- बहु + उअयं = बहअयं
भाणु + उवज्झाय = भाणवज्झाय असमान स्वर (४) अ+ इ, अ + ई = ए यथा- ण + इच्छइ णेच्छइ
= दिणेस महा + इसि = महेसि
. राअ + इसि = राणसि (५) अ + आ, आ + अ = आ यथा- गीअ + आई __ . = गीआई
कला + अहिवइ = कलाहिवइ (६) अ+ उ, अ + ऊ= ओ यथा- तस्स + उवरि __= तस्सोवरि
समण
___ + उवासग = समणोवासग
पाअ + ऊण = पाओण संयुक्त-व्यंजन के पूर्व स्वर (७) अ + इ = इ यथा- गअ + इंद = गइंद
णर + इंद ___= णरिंद . अ + उ = उ यथा- णील + उप्पल ___ = णीलुप्पल
रयण + उज्जलं ___ = रयणुज्जलं
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प्राकृत स्वयं-शिक्षक