Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy
________________
पेच्छइ य तं कुमारं, महिन्दतणया नरिन्दमग्गम्मि । पुलयन्ति न य तिप्पइ, कुवलयदलसरिसनयणेहिं॥३८ ।। पवणंजएण वि तओ, पासायतलट्ठिया पलोयन्ती। दूरं उब्वियणिज्जा, उक्का इव अंजणा दिट्ठा॥३९ ॥ तं पेच्छिऊण रुट्ठो, पवणगई रोसपसरियसरीरो। भणइ य अहो ! अलज्जा, जा मज्झ उवट्ठिया पुरओ॥४०॥ रइऊण अंजलिउडं, चलणपणामं च तस्स काऊण । भणइ उवालम्भन्ती, दूरपवासो तुमं सामी॥४१ ।। वच्चन्तेण परियणो, सव्वो संभासिओ तुमे सामि । न य अन्नमणगएण वि, · आलत्ता हं अकयपुण्णा॥४२ ।। जीयं मरणं पि तुमे, आयत्तं मज्झ नत्थि संदेहो। जइ वि हु जासि पवासं, तह वि य अम्हे सरेज्जासु॥४३ ॥ एवं पलवन्तीए, पवणगई मत्तगयवरारूढो। निग्गन्तूण पुराओ, उवट्ठिओ माणससरम्मि॥४४ ॥
विज्जाबलेण रइयो, तत्थ निवेसो घरा-ऽऽसणाईओ। - ताव च्चिय अत्थगिरि, कमेण सूरो समल्लीणो॥४५ ॥ .: पवणवेगेण अंजनाअ सुमरणं ..
अह सो संझासमए, भवण- गवक्खन्तरेण पवणगई। पेच्छइ सरं सुरम्मं, निम्मलवरसलिलसंपुण्णं ॥४६ ॥ मच्छेसु कच्छभेसु य, सारस-हंसेसु पयलियतरंगं । गुमुगुमुगुमन्तभमरं, सहस्सपत्तेसु संछन्नं ॥४७ ॥ अइदारुणप्पयावो, लोए काऊण दीहरज्जं सो। अत्थाओ दिवसयरो, अवसाणे नरवई चेव॥४८॥ दियहम्मि वियसियाई, निययं भमरउलछड्डियदलाई। मउलेन्ति कुवलयाई, दिणयरविरहम्मि दुहियाई॥४९ ॥ अह ते हंसाईया, सउणा लीलाइउं सरवरम्मि। दटुं संझासमयं, गया य निययाइँ ठाणाइं॥५०॥ तत्थेक्का चक्काई, दिट्ठा पवणंजएण कुव्वन्ती। अहियं समाउलमणा, अहिणवविरहग्गितवियंगी॥५१ ॥
१४२
Page Navigation
1 ... 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250