Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy
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विरोहो, जाओ अइदारुणो
रावणस्स वरुणेण सह विरोहो एथन्तरे रावण - वरुणाण तओ, दोण्ह वि पुण लंकाहिवेण दूओ, वरुणस्स य पेसिओ गन्तूण पणमिऊण य, कयासणो विज्जाहराण सामी, वरुण ! तुमं भणइ कुणह पणामं व फुडं, अह ठाहि रणे हसिऊण भणइ वरुणो, दूयाहम ! को सि रावणो नाम ? | न य तस्स सिरपणामं, करेमि आणापमाणं वा ॥१३॥
सवडहुत्तो ॥ १२ ॥
रणारम्भो । दिप्पलबलाणं ॥ १० ॥
अइतुरन्तो ।
भणइ रावणो
न य सो वेसमणो हं, नेय जमो न य सहस्सकिरणो वा ।
जो दिव्वसत्थभीओ, कुणइ पणामं
.
वयणाई ॥ ११ ॥
रुट्ठो ।
वरुणेणं उवलद्धो, दूओ जं एव तो रावणस्स गन्तुं कहेइ सव्वं सोऊण दूयवयणं, रुट्ठो लंकाहिवो दिव्वत्थेहि विणा मऍ, अवस्स एत्थन्तरे पट्टो, दसाणो
वरुणपुरं,
संपत्तो सोऊण रावणं सो, समागयं रणपरिहत्थुच्छाहो, विणिग्गओ अभिमुहो
राईवपुण्डरीया, पुत्ता बत्तीस
खण्ड १
तुहं दीणो ॥ १४ ॥ फरुसवयणेहिं ।
जाभणियं । । १५ ॥
भइ एवं ।
वरुणो जिएयव्वो ॥ १६ ॥ सयलबलकयाडोवो |
मणि-कणयविचित्तपायारं ॥ १७ ॥
पुत्तबलसमाउत्तो । वरुणो ॥ १८ ॥
सहस्साइं ।
रक्खसभंडाणं ।
सन्नद्ध-बद्ध-कवया,
अब्भट्टा
पुल्लिंगं ।
अन्नोन्नसत्थभज्जन्त- संकुलं अइंदारुणं पवत्तं, जुज्झं रह-गय-तुरंग - जोहा, समरे जुज्झन्ति
विवडन्तवरसुहडं॥२० ॥ अभिमुहावडिया ।
सर - संत्ति - खग्ग - तोमर चक्काउह - मोग्गरकरग्गा ॥ २१ ॥ रक्खसभडेहि भग्गं, वरुणबलं विवडियाऽऽस- गय - जोहं ।
॥१९॥
दट्ठूण पलायन्तं, जलको अभिमुहीहूओ ॥२२॥ वरुणेण बलं भग्गं, ओसरियं पेच्छिऊण अब्भिडइ रोसपसरिय-सरोहनिवहं
दहवयणो । विमुंचन्तो॥२३॥
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