Book Title: Prakrit Swayam Shikshak
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy
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सोऊण सुमिणसरिसं, बाला पवणंजयस्स आगमणं ।
भणइ य किं हससि तुमं?, पहसिय ! हसिया कयन्तेण ॥६७॥ • अहवा को तुह दोसो?, दोसो च्चिय मज्झ पुव्वकम्माणं ।
जा हं पियपरिभूया, परिभूया सव्वलोएणं ॥६८ ।। भणिया य पहसिएणं, सामिणि ! मा एवं दुक्खिया होहि । सो तुज्झ हिययइट्ठो, एत्थं चिय आगओ भवणे॥६९ ॥ कच्छन्तरट्ठिओ सो, वसन्तमालाएँ कयपणामाए। फवणंजओ . कुमारो, पवेसिओ वासभवणम्मि॥७० ॥ अब्भुट्ठिया च सहसा, दइयं दद्दूण अंजणा बाला। ओणमियउत्तमंगा, . तस्स य. चलणंजली कुणइ॥७१ ॥ पवणंजओवविठ्ठो, कुसुमपडोच्छइयरयणपल्लंके। हरिसवसुन्भिन्नंगी, तस्स ठिया अंजणा पासे ॥७२ ।।
कच्छन्तरम्मि 'बीए, वसन्तमाला समं पहसिएणं। __अच्छइ विणोयमुहला, कहासु विविहासु जंपन्ती ॥७३ ॥
पवणवेगेण सह अंजनाअ समागमं
तो भणइ पर्वणवेगो, जं सि तुमं सासिया अकज्जेणं । तं. मे खमाहि सन्दरि !, अवराहसहस्ससंघायं ॥७४ ॥ भणइ य महिन्दतणया, नाह !, तुम नत्थि कोइ अवराहो। समरिय मणोरहफलं, संपइ नेहं .वहेज्जासु॥७५ ॥ भणइ पवणवेगो, सुन्दरि ! पम्हससु सव्व अवराहे। होहि सुपसन्नहियया, एस पणामो कओ तुझं ॥७६ ॥ आलिंगिया. सनेहं, कुवलयदलसरिसकोमलसरीरा । वयणं पियस्स अणिमिस-नयणेहि व पियइ अणुरायं ॥७७ ॥ घणनेहनिब्भराणं, दोण्ह वि अणुरायलद्धपसराणं । आवडियं चिय सुरयं, अणेगचडुकम्मविणिओगं ॥७८ ॥ आलिंगण-परिचुम्बण-रइउच्छाहणगुणेहि सुसमिद्धं । निव्ववियविरहदुक्खं, मणतुट्ठियरंजियजहिच्छं ॥७९ ॥ सुरतूसवे समत्ते, दोण्णि वि खेयालसंगमंगाई। अन्नोन्नभुयालिंगण- सुहेण निदं पवन्नाइं॥८० ।।
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खण्ड १
१५१
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