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चतुर्थी - एकवचन
संतुट्ठस्स विस्स इदं सम्माणं अथ
पु.
स्त्री.
संतुट्ठाअ णारीए इदं धणं अस्थि
नपुं. संतुट्ठस्स मित्तस्स सो फलं देइ पंचमी - एकवचवन
पु.
संतु तो णिवतो सो धणं मग्गइ स्त्री. संतुट्ठत्तो णारित्तो सा सिक्खं लहइ संतुट्ठत्तो मित्तत्तो सो फलं गिण्हइ
नपुं
षष्ठी - एकवचवन
पु.
संतुट्ठस्स णिवस्स इदं रज्जं अस्थि -
स्त्री.
संतुट्ठाअ णारीए इदं काअव्वं अस्थि नपुं. संतुट्ठस्स मित्तस्स इमो पुत्तो अतिथ
सप्तमी - एकवचवन
पु.
संतुट्ठे णिवे लच्छी वसई
स्त्री. संतुट्ठाए णारीए लज्जा होइ
संतुट्ठे मित्ते णाणं हो
उदाहरण वाक्य :
पु.
पढिस्संतो गंथो
स्त्री. पढिस्संता गाहा
बहुवचन
संतुट्ठाण णिवाण संसारो असारो अत्थि
संतुट्ठाण णारीण इदं घरं अस्थि संतुट्ठाण मित्ताण अहं नमामि
बहुवचन संतुट्ठाहिंतो णिवाहिंतो सो धणं मग्गइ संतुट्ठाहिंतो णारीहिंतो सा सिक्खं लहइ संतुट्ठाहिंतो मित्ताहिंतो सो फलाि
गिues
नपुं
निर्देश : इन उपर्युक्त वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद करो ।
भविष्यकाल
बहुवचन
संतुट्ठाण णिवाण इदं कज्जं अस्थि
संतुट्ठाण णारीण इदं घरं अस्थि संतुट्ठाण मित्ताण इदं काअव्वं अ बहुवचन संतुणिवेसु लच्छी वसई
संतुट्ठेसु णारीसु लज्जा होइ. संतुट्ठेसु मित्तेसु खति होइ
खण्ड १
पढ़ा जाने वाला ग्रन्थ ।
पढ़ी जाने वाली गाथा | पढ़ा जाने वाला पत्र ।
नपुं. पढिस्संतं पत्तं
.नि. ७७ : (क) मूल क्रिया के अ को इ होने पर 'संत' प्रत्यय लगने पर भविष्यकाल
. कृदन्त के रूप बनते हैं। जैसे
पढ् + इ + स्संत = पढिस्संत ।
(ख) भविष्य कृदन्त बन जाने पर पु, स्त्री एवं नपुं. विशेष्य के अनुसार इन कृदन्तों के सभी विभक्तियों में रूप बनते हैं ।
प्राकृत में अनुवाद करो :
1
वह जयपुर गया हुआ है। यह पुस्तक पढ़ी हुई है। झुकी हुई लता से फूल तोड़ा । पूजित साधुओं को प्रणाम करो । डरी हुई युवतियों से बात करो । आनन्दित पुरुषों का जीवन अच्छा है। उसके द्वारा यह कहा हुआ है। विकसित कलियों को मत तोड़ो। लिखी . हुई पुस्तक यहाँ लाओ। यह देखा हुआ नगर है। लिखा जाने वाला पत्र कहाँ है ? सुना जाने वाला शास्त्र वहाँ है ।
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