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पाठ
संज्ञार्थक क्रियाएँ
शब्द
आयार
उवदेस
कोव
पाढ
णास
लेह
तव
हरिस
फास
(क)
उदाहरण वाक्य :
अर्थ
आचार
उपदेश
क्रोध
पाठ
नाश
लेख
तप
९४
इमो महावीरस्स उवदेसो अस्थि सो कोवं जिण मुणी तवेण झाय
सो कम्मस्स खयस्स तवइ बाओ को बह साहू कोवस्स णासं कुणइ सो वे लीणो अतिथ
उवदेसओ आगच्छइ सो सेवअं धणं देइ अहं रक्खएण सह गच्छामि सो सासअस्स नमइ मुण उवास अत्तो भोअणं मग्गइ सो अस्स पुत्तो अस्थि सावए भत्ती अत्थि
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स्पर्श
भारवह
खय
क्षय
रक्खअ
नि. ६० : इन शब्दों के रूप अकारान्त पुल्लिंग शब्दों की तरह सभी विभक्तियों में
चलते हैं।
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(ख)
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शब्द उवदेसअ
उवासअ
किसअ
गायअ
सासअ
नत्तअ
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सावअ
सेवअ
(12)
६४
(पुल्लिंग संज्ञा )
अर्थ
उपदेशक
उपासक
कृषक
गायक
शासक
नर्त्तक
श्रावक
सेवक
मज़दूर
रक्षक
यह महावीर का उपदेश है।
वह क्रोध को जीतता है ।
मुनि तप के द्वारा ध्यान करता है।
वह कर्म के क्षय के लिए तप करता है ।
बालक क्रोध से डरता है ।
साधु क्रोध का नाश करता |
वह तप में लीन हैं।
उपदेशक आता है।
1
वह सेवक को धन देता है ।
मैं रक्षक के साथ जाता हूँ ।
वह शासक के लिए नमन करता है
1
मुनि उपासक से भोजन माँगता है ।
वह नर्तक का पुत्र है ।
श्रावक में भक्ति है।
प्राकृत में अनुवाद करो :
उसका आचार अच्छा है। वह किस पुस्तक का पाठ है ? उसके लेख में शक्ति है । पापों का नाश कब होगा । नारी के स्पर्श में क्षणिक सुख है। तप में कर्मों का क्षय होता है। वह महावीर का उपासक है। तुम किस देश के शासक हो। वह राजा का सेवक है। मजदूरों के द्वारा महल बनता है । किसान अन्न पैदा करता है ।
प्राकृत स्वयं-शिक्षक